बिहार में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर सचिन पायलट ने रोड़ा लगाया। पहली बार ऐसा है जब अशोक गहलोत के पास कांग्रेस में कोई बड़ा दायित्व नहीं है। रघु शर्मा जैसे नेताओं का तो सूपड़ा ही साफ।
राजस्थान के डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट इस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव है और वे छत्तीसगढ़ के प्रभारी है, लेकिन पार्टी हाईकमान खासकर राहुल गांधी के निर्देश पर सचिन पायलट बिहार में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। चूंकि बिहार में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है इसलिए 11 अप्रैल को पायलट ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट कहा कि मुख्यमंत्री के नाम का फैसला चुनाव परिणाम आने पर किया जाएगा। पायलट ने यह बात तब कही जब इंडिया गठबंधन के सदस्य आरजेडी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया। यानी पायलट ने मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर आरजेडी के समक्ष रोड़ा खड़ा कर दिया है। मालूम हो कि गत चुनावों में कांग्रेस ने बिहार में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे मात्र 19 सीटों पर ही जीत मिल पाई। जबकि आरजेडी ने 144 पर उम्मीदवार खड़े कर 75 सीटें हासिल की। आरजेडी का कहना है कि इस बार समझौते में कांग्रेस को कम सीटें दी जाए, क्योंकि कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाते। जबकि कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीटों पर ही दावा कर रही है। जानकार सूत्रों का कहना है कि आरजेडी पर दबाव डालने के लिए ही सचिन पायलट ने रोड़ा खड़ा किया है। देखना होगा कि पायलट के इस बयान पर तेजस्वी यादव क्या प्रतिक्रिया देते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा ने मौजूदा मुख्यमंत्री और जेडीयू के नेता नीतिश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है। यानी भाजपा ने चुनाव परिणाम से पहले ही नीतिश कुमार को मुख्यमंत्री मान लिया है।
गहलोत के पास दायित्व नहीं:
कांग्रेस की राजनीति में यह पहला अवसर है, जब मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद अशोक गहलोत के पास संगठन का कोई दायित्व नहीं है। इससे पहले गहलोज जब मुख्यमयंत्री रहते हुए राजस्थान में चुनाव हार गए तो उन्हें कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया। एक बार तो गहलोत संगठन महासचिव भी रहे। अब कांग्रेस की राजनीति में गहलोत के मुकाबले पायलट का ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। जानकार सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री रहते हुए गहलोत ने 25 सितंबर 2022 को जो बगावत की थी, उसकी वजह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी खफा है। मुख्यमंत्री के पद से हटे हुए गहलोत को सवा वर्ष गुजर गया है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर परकोई सक्रियता देखने को नहीं मिली है। अशोक गहलोत जब मुख्यमंत्री थे, तभी राजस्थान के मंत्री रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बनाया गया। रघु शर्मा की देखरेख में ही गुजरात विधानसभा के चुनाव भी हुए, लेकिन 182 में से कांग्रेस को मात्र 15 सीटों पर ही जीत मिल पाई। इतनी बुरी हार के बाद रघु शर्मा ने स्वत: ही प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया। तब रघु शर्मा पर गुजरात में टिक बेचने के आरोप भी लगे। जब रघु शर्मा गुजरात के प्रभारी थे, तब राजस्थान में अनेक समर्थक मुख्यमंत्री का सपना देखने लगे थे। रघु शर्मा का घमंड भी सातवें आसमान पर था, लेकिन रघु शर्मा वर्ष 2023 में अपने निर्वाचन क्षेत्र केकड़ी से विधानसभा का चुनाव भी हार गए। अब कांग्रेस की राजनीति में रघु शर्मा को कोई पूछने वाला नहीं है। रघु को भी गहलोत का ही समर्थक माना जाता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (12-04-2025)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9166157932To Contact- 9829071511