आखिर सोनम वांगचुक और मौलाना तौकीर रजा जैसे नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था को क्यों चुनौती देते हैं?

भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है और आम जनता को अपने वोट से सरकार बदलने का अधिकार है। यदि कोई सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है तो पांच वर्ष बाद ऐसी सरकार को हटाया जा सकता है। ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं होती, लेकिन फिर भी पूरे देश ने देखा कि चीन की सीमा से सटे लद्दाख में जमकर हिंसा हुई। इस हिंसा में सरकारी संस्थानों को आग के हवाले कर दिया गया। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के बरेली में मुसलमानों के जुलूस में शामिल लोगों में जमकर पत्थरबाजी की जिससे अनेक पुलिस कर्मी बुरी तरह जख्मी हो गए। 25 और 26 सितंबर को हुई इन घटनाओं के पीछे सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और मौलाना तौकीर रजा खान के उत्तेजित भाषण रहे। वांगचुक ने लद्दाख में और मौलाना रजा ने बरेली में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देने वाले भाषण दिए। वांगचुक का कहना रहा कि यदि लद्दाख को राज्य का दर्जा नहीं दिया गया तो चीन का कब्जा हो जाएगा। वांगचुक की महत्वाकांक्षा किसी से भी छिपी नहीं है। लद्दाख के डीजीपी एसडी सिंह जामवाल का तो आरोप है कि वांगचुक के संबंध पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों से है। हालांकि अब वांगचुक को गिरफ्तार कर राजस्थान की जोधपुर की सेंट्रल जेल में भेज दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि जो हिंसा हुई उसका जिम्मेदार कौन होगा? वांगचुक को भी पता है कि लद्दाख एक सीमावर्ती क्षेत्र है। यहां विशेष परिस्थितियों में भारत की सीमा की रक्षा की जाती है। यदि वांगचुक अपने कुछ समर्थकों के साथ अशांति करेंगे तो चीन जैसे दुश्मन देश को फायदा होगा। क्या वांगचुक की मंशा लद्दाख पर चीन का कब्जा करवाने की है? अब समय आ गया है जब सोनम वांगचुक जैसे नेताओं को सबक सिखाया जाए। ऐसे नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जहां तक मुस्लिम नेता मौलाना तौकीर रजा खान का सवाल है तो वे भी अपने समर्थकों के दम पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देते रहते हैं। बरेली में किसी भी जुलूस के निकलने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया, लेकिन फिर भी तौकीर रजा ने धर्म की आड़ लेकर मुसलमानों को भड़काने का काम किया। तौकीर रजा के बयानों से प्रतीत होता है कि वह शासन प्रशासन को नहीं मानते हैं। उनका मकसद सिर्फ अपनी बात को मनवाना है। तौकीर रजा की भाषा भी एक मौलाना की नहीं हो सकती। लद्दाख के नेता सोनम वांगचुक की तरह तौकीर रजा भी महत्वाकांक्षी मुस्लिम नेता है। अच्छा हो कि यह दोनों नेता लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहकर अपनी बातों को रखे। यदि व्यवस्था को चुनौती दी जाएगी तो इससे देश का ही नुकसान होगा। जब भारत के चारों तरफ अशांति का माहौल है, तब देश के नेताओं के देशहित को प्राथमिकता देनी चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (28-09-2025)
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