मुम्बई से लेकर जयपुर तक राजनीति का चरित्र एक सा।
मुम्बई से लेकर जयपुर तक राजनीति का चरित्र एक सा। सात दिन गुजर जाने के बाद भी महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के पद पर भाजपा-शिवसेना में सहमति नहीं। ऐसी ही स्थिति राजस्थान में भी हुई थी।
31 अक्टूबर को भी महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री को लेकर सहमति नहीं बन सकी है। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित हुए थे और भाजपा-शिवसेना के गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल गया था, लेकिन 31 अक्टूबर को सात दिन गुजर जाने के बाद भी सरकार बनाने पर सहमति नहीं बनी है। अलबत्ता 31 अक्टूबर को शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुन लिया है। हालांकि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे के नेता चुनने की उम्मीद थी, लेकिन शिंदे को नेता चुनने से प्रतीत होता है कि अब शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा छोड़ दिया है। यदि शिवसेना मुख्यमंत्री पद ही चाहती तो आदित्य ठाकरे को विधायक दल का नेता चुना जाता। संभवत: अब आदित्य ठाकरे डिप्टी सीएम भी नहीं बने। कहा जा रहा है कि भाजपा विधायक दल के नेता देवेन्द्र फडऩवीस और उद्धव ठाकरे के बीच किसी गुप्त स्थान पर बैठक हो रही है। पिछले सात दिनों से महाराष्ट्र में जो राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है वैसा ही दस माह पहले राजस्थान में ही चला था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिल गया था, लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट में मुख्यमंत्री पद को लेकर जो खींचतान चली, उसकी वजह से सरकार बनाने में सात दिन लग गए। तब भाजपा नेेताओं की प्रतिक्रिया थी कि कांग्रेस में जब मुख्यमंत्री पद पर ही खींचतान है तो सरकार कैसे चलेगी? हालांकि बाद में समझौते के तहत सचिन पायलट को डिप्टी सीएम बनाया गया। मौजूदा समय में पायलट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। यानि दस माह पहले राजस्थान कांग्रेस में जो हालात थे, वैसे ही अब महाराष्ट्र भाजपा और शिवसेना के हैं। यानि मुम्बई से लेकर जयपुर तक राजनीति का चरित्र एक सा है। तब राजस्थान में सचिन पायलट को कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद पर बनाए रख कर डिप्टी सीएम बना कर भरपाई की गई। अब महाराष्ट्र में देखना होगा कि मुख्यमंत्री के पद की एवज में शिवसेना को कितनी भरपाई की जाती है। मुख्यमंत्री के पद पर दावा छोडऩे की एवज में शिवसेना अब महाराष्ट्र में गृह, वित्त, नगरीय विकास, स्वच्छता जैसे मलाई वाले विभाग चाहती है। देखना होगा कि देवेन्द्र फडऩवीस शिवसेना के शेरों से कैसे निपटते हैं।
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