अजमेर के बिजली उपभोक्ताओं को 50 दिन का बिल।
अजमेर के बिजली उपभोक्ताओं को 50 दिन का बिल।
स्थायी शुल्क आदि के नाम पर टाटा पावर की लूट।
टाटा पावर को मनमर्जी करने नहीं दी जाएगी, सख्त कार्यवाही-डिस्कॉम एमडी।
टाटा पावर की दादागिरी से कांग्रेस सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर।
अजमेर शहर में बिजली वितरण संभालने वाली आटा पावर कंपनी ने वित्तीय वर्ष के अंतिम माह में उपभोक्ताओं को 50 दिन का बिल दिया है। आमतौर पर उपभोक्ताओं को दो माह यानि 60 दिन का बिल दिया जाता है। 50 दिन के बिल में भी उपभोक्ताओं से स्थाई और अन्य शुल्क दो माह के ही वसूले जा रहे हैं। सवाल उठता है कि जब उपभोक्ताओं को 50 दिन का बिल दिया जा रहा है तो फिर स्थाई शुल्क आदि 60 दिन के क्यों वसूले जा रहे हैं? इस संबंध में फॉयसागर रोड स्थित प्रकाश नगर निवासी दिनेश कुमार गुप्ता ने एक लिखित शिकायत अजमेर विद्युत वितरण निगम के अधीक्षण अभियन्ता एनएस निर्वाण को दी है। इस शिकायत में कहा गया है कि गत बार उन्हें 28 नवम्बर 2019 से 27 जनवरी 2020 की अवधि का दो माह का बिल दिया गया था जिसमें स्थाई शुल्क 426 रुपए अंकित किए थे, लेकिन इस बार 17 मार्च को ही मीटर की रीडिंग कर 50 दिन का बिल भिजवा दिया, जिसमें स्थाई शुल्क 426 रुपए दिखाए गए हैं। ऐसा शहर भर के उपभोक्ताओं के साथ किया जा रहा है। निर्वाण ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश दिए।
टाटा पावर की मनमर्जी नहीं चलेगी-एमडी भाटी:
वहीं अजमेर विद्युत वितरण निगम के प्रबंध निदेशक वीएस भाटी ने कहा कि टाटा पावर को निगम के दिशा निर्देशों के अनुरूप काम करना चाहिए। कंपनी को पहले ही निर्देश दे रखे हैं कि उपभोक्ताओं को एक माह में बिल दिया जाए। अब यदि दो माह अथवा 50 दिन में उपभोक्ताओं को बिल दिया जा रहा है तो यह सही नहीं है। 50 दिन का बिल पूरी तरह गलत है। इस संबंध में टाटा पावर के खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। जिन उपभोक्ताओं से शुल्क के नाम पर अधिक राशि वसूली की जा रही है उसका समायोजन करवाया जाएगा। भाटी ने कहा कि टाटा पावर को समय-समय पर अवश्यक निर्देश दिए जाते हैं। टाटा पावर अजमेर के उपभोक्ताओं के साथ मनमर्जी नहीं कर सकता। आवश्यक होने पर जुर्माने की कार्यवाही भी की जाएगी।
सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर:
टाटा पावर की मनमर्जी पूर्ण रवैये की वजह से प्रदेश की कांग्रेस सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। उपभोक्ताओं की नाराजगी सरकार पर ही होती है। यह पहला मामला नहीं है, जब टाटा पावर की मनमर्जी सामने आई है इससे पहले भी मीटर में कथित गड़बड़ी के नाम पर उपभोक्ताओं को अधिक बिल दिए गए है। इसी प्रकार ओवर बिलिंग की शिकायत तो आम है। उपभोक्ताओं से जबरन जीएसटी वसूलने पर भी डिस्कॉम की ओर से टाटा पावर पर कार्यवाही की जा चुकी है। जीओ कंपनी केबिल किराए के रूप में करोड़ा रुपए की राशि वसूलने का विवाद भी राज्य सरकार में विचाराधीन है। आम उपभोक्ताओं का मानना है कि टाटा पावर किसी न किसी तरीके से उपभोक्ताओं से अधिक राशि वसूल रहा है। कथित तौर पर बिजली चोरी के मामले में कार्यवाही करने और फिर फैसला देने की भूमिका भी टाटा पावर ही निभा रहा है। यह पूरी तरह न्यास के सिद्धांत के खिलाफ है। इतना ही नहीं बिजली चोरी पकडऩे के समय पुलिस के उपयोग का शुल्क भी टाटा पावर की ओर से नहीं चुकाया जाता है। टाटा पावर डिस्कॉम की पुलिस का ही गलत तरीके से उपयोग कर रहा है। गंभीर बात यह है कि टाटा पावर की मनमर्जी के खिलाफ कोई सुनने वाला नहीं है।
जांच के बाद कार्यवाही:
वहीं टाटा पावर के सीईओ गजानन काले ने कहा है कि पचास दिन के बिलों की जांच करवाई जाएगी। यदि स्थाई शुल्क को लेकर उपभोक्ताओं से अधिक राशि ली गई है तो उसे समायोजित भी किया जाएगा।
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