यानी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदने में 120 करोड़ रुपया तो गहलोत सरकार ने दलालों को ही दे दिया। वैक्सीन की बर्बादी के बाद अब 20 हजार कंसंट्रेटर की खरीद में भास्कर अखबार ने दलाली की बात उजागर की। अब दलाल फर्मो के नाम भी उजागर होने चाहिए।
2 जुलाई को दैनिक भास्कर अखबार में एक खोजपूर्ण स्टोरी प्रकाशित हुई है। इस स्टोरी में बताया गया है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कोरोना काल में गत मई माह में 20 हजार ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदे। भास्कर की टीम ने 65 स्वास्थ्य केन्द्रों के 1300 कंसंट्रेटरों की जांच की तो अधिकांश कबाड़ में पड़े मिले। कंसंट्रेटर भी क्षमता के अनुरूप काम नहीं कर रहे थे। भास्कर का तर्क है कि ये कंसंट्रेटर तब खरीदे गए, जब दूसरी लहर में कोरोना का पीक गुजर चुका था। ऐसे तर्क अपनी जगह है, लेकिन खबर में महत्वपूर्ण बात यह है कि गहलोत सरकार ने ये 20 हजार कंसंट्रेटर निजी कंपनियों से दलालों के माध्यम से खरीदे हैं। दलाल फर्मों ने सरकार को एक कंसंट्रेटर एक लाख रुपए में बेचा है, जबकि निजी कंपनियां इन्हीं कंसंट्रेटरों को अधिकतम 40 हजार रुपए में देने को तत्पर है। यानी गहलोत सरकार के चिकित्सा विभाग ने 120 करोड़ रुपया तो दलालों को ही दे दिया। यदि सरकार सीधे निजी कंपनियों से 20 हजार कंसंट्रेटर खरीदती तो उसे अधिकतम 80 करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ता, लेकिन सरकार ने दलालों के माध्यम से कंसंट्रेटर खरीदे, इसलिए 20 हजार कंसंट्रेटरों का भुगतान 200 करोड़ रुपए करना पड़ा। खबर में किशनगढ़ के निर्दलीय विधायक सुरेश टाक का बयान भी प्रकाशित किया है। टाक का कहना है कि अजमेर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने उनके विधायक कोष से जो कंसंट्रेटर खरीदे थे वो वापस कर दिया,क्योंकि वे खराब थे। सुरेश टाक भाजपा के विधायक नहीं है, बल्कि गहलोत सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक हैं। सवाल उठता है कि आखिर चिकित्सा विभाग को दलाल फर्मों के माध्यम से कंसंट्रेटर क्यों खरीदे? इसमें कोई दो राय नहीं कि इस खोजपूर्ण खबर को लिखे के लिए भास्कर टीम को कई दिनों तक मेहनत करनी पड़ी होगी। अब भास्कर को चाहिए कि उन दलालों ने नाम भी उजागर करें, जिन्होंने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर गहलोत सरकार के चिकित्सा विभाग को बेचे हैं। यदि दलालों के नाम उजागर हो जाएंगे तो राजस्थान के अनेक राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों के चेहरे पर से नकाब उतर जाएगी। वैसे यह काम कठिन नहीं है क्योंकि संबंधित मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से आरटीआई में सूचनाएं मांगी जा सकती है। अशोक गहलोत तो आरटीआई कानून के झंडाबरदार है, इसलिए दलालों के नाम बताने पर एतराज भी नहीं होगा। भास्कर ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की खोजपूर्ण खबर तब लिखी है, जब वैक्सीन की बर्बादी वाली खबर को चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने झूठा बता दिया है। भास्कर ने भले ही कचरे के ढेर में पड़ी वैक्सीन की शीशियां दिखाई हो, लेकिन सरकार वैक्सीन की बर्बादी की खबर को सही नहीं माना। चूंकि देश का सबसे बड़ा अखबार है, इसलिए ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की खबर छाप कर गहलोत सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को यह तो बताना ही चाहिए कि जब निजी कंपनियां एक कंसंट्रेटर 40 हजार रुपए में बेचने को तैयार थी तो फिर एक लाख रुपए में क्यों खरीदा गया? कोरोना काल में सिर्फ कंसंट्रेटर ही नहीं बल्कि दूसरे चिकित्सा उपकरण भी करोड़ों रुपए के खरीदे गए हैं। चिकित्सा विभाग में हुई खरीद का सोशल ऑडिट करवाया जाना चाहिए। S.P.MITTAL BLOGGER (02-07-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9799123137To Contact- 9829071511