यूरोप की तकनीक से मजबूत होगा अजमेर का डेयरी उद्योग। डेयरी अध्यक्ष रामचन्द्र चौधरी का सफल रहा हॉलेण्ड दौरा।
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अजमेर दुग्ध डेयरी के अध्यक्ष रामचन्द्र चौधरी ने कहा कि अब यूरोप की तकनीक से अजमेर के डेयरी उद्योग को मजबूत किया जाएगा। इससे जहां पशुपालकों को दूध के कारोबार में लाभ होगा, वहीं उपभोक्ताओं को अच्छी गुणवत्ता वाले दूध और उनके उत्पाद किफायती दरों पर उपलब्ध होंगे।
चौधरी ने बताया कि इंटरनेशनल डेयरी फैडरेशन की कॉन्फ्रेंस 16 से 18 अक्टूबर के बीच हॉलेण्ड के रोटेडम शहर में हुई। इस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया, जबकि राष्ट्रीय डेयरी फेडरेशन, अमूल डेयरी आदि के प्रतिनिधियों ने भी कॉन्फे्रंस में भाग लिया। कॉन्फ्रेंस में डेयरी उद्योग के बारे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विचार-विमर्श हुआ। यह माना गया कि डेयरी के क्षेत्र में मन्दी का दौर समाप्त हो गया है और आने वाले 5 वर्षों में इस क्षेत्र में तेजी रहेगी। वर्तमान में विश्व की आबादी कोई 7 अरब है, लेकिन 2050 में यह 9 अरब हो जाएगी इसलिए दूध और दूध से बने उत्पादों की मांग लगातार बढ़ेगी। कॉन्फ्रेंस में यह भी माना गया कि दुनिया भर में प्रति व्यक्ति आय में वृद्वि हुई है इसलिए समाज का कमजोर माने जाने वाला व्यक्ति भी दूध का उपयोग कर रहा है। ऐसे में प्रत्येक देश में दूध के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है। औद्योगिक विकास की वजह से चीन में डेयरी उद्योग कमजोर रहा, लेकिन अब चीन के लोगों ने यूरोप के देशों में बड़े-बड़े फार्म हाऊस खोल दिए हैं और अपने देश को दूध और उसके उत्पाद की सप्लाई कर रहे हैं। यानि चीन जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में भी दूध की मांग है।
चौधरी ने बताया कि कॉन्फे्रंस में भारत के संदर्भ में भी विस्तृत चर्चा हुई। यह माना गया कि भारत दुनिया भर में सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन वाला देश है, लेकिन भारत में अभी भी मांग के अनुरूप दूध का उत्पादन नहीं होता। असल में यूरोप में डेयरी उद्योग में जो तकनीक अपनाई जाती है उसका उपयोग भारत में नहीं हो रहा। यह माना कि प्राकृतिक वातावरण की वजह से यूरोप के पशु ज्यादा दूध देते हैं, लेकिन भारत में तकनीक भी कमजोर है इसलिए प्रति जानवर दूध का उत्पादन बहुत कम है। यूरोप के देशों में एक गाय 30 से 50 लीटर दूध रोज देती है जबकि राजस्थान में यह मात्र 8 लीटर है, उनका प्रयास होगा कि अजमेर जिले में नस्ल सुधार कर प्रति गाय 16 लीटर दूध किया जाए। इसके लिए गुजरात के महसाणा और सावरकाटा से उन्नत किस्म के सांड मंगवाए जाएंगे। इसके साथ ही कृत्रिम गर्भाधान भी करवाया जाएगा।
चौधरी ने कहा कि रोटेडम की कॉन्फ्रेंस के दौरान और विभिन्न फार्म हाऊसों को देखने के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि यदि आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो अजमेर डेयरी का नाम भी देश में ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है। जिले के पशुपालकों को भी अब नई तकनीक का इस्तेमाल करना होगा। अब वो जमामा लद गया, जब साधारण तरीके से पशुओं को पाला जाता था। जिस प्रकार मनुष्य के स्वास्थ्य का ख्याल रखा जाता है। उसी प्रकार पशुपालक को अपने जानवर का भी ख्याल रखना होगा। अब सिर्फ चारा खिलाने से कुछ नहीं होगा बल्कि बाई पास प्रोटीन फीड जानवरों को देना होगा ताकि उन्हें न केवल स्वस्थ रखा जा सके बल्कि दूध देने की क्षमता भी बढ़ाई जा सके। इसके लिए जिले के पशुपालकों को न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाया जाएगा।
चौधरी ने बताया कि अजमेर में 250 करोड़ रुपए का नया प्लांट लगना है इसमें यूरोप की तकनीक का ही इस्तेमाल होगा। उनकी प्राथमिकता 4 बिन्दुओं पर रहेगी। 1- चीज का उत्पादन, 2-सिटी सप्लाई, 3- फ्लेवर मिल्क तथा 4- दही और उससे बनने वाले उत्पादों को तैयार करना है। इसके लिए नए प्लांट में गामा, जीया एल्फालेबल डीओएच जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की मदद ली जाएगी। यूरोप के देशों में भी डेयरी उद्योग सहकारिता के माध्यम से संचालित होता है।
चौधरी ने बताया कि यूरोप के देशों में पशुपालन पूरी तरह व्यावसायिक नजरिए से होता है जबकि भारत में पशुपालन के साथ धार्मिक और सामाजिक भावनाएं भी जुड़ी होती है। इसकी वजह से भी कई मौकों पर पशुपालन के क्षेत्र में भारत पिछड़ा रहता है। सरकार को ऐसा रास्ता निकालना चाहिए जिसमें पशुपालन को व्यावसायिक दृष्टि से भी विकसित किया जा सके। आज देश के डेयरी उद्योग को सरकार की मदद की दरकार है। जब हमारा देश कृषि प्रधान है तो फिर सरकार को भी पशुपालकों और उनके पशुओं के विकास में भागीदारी निभानी चाहिए। भारत में भी 2050 तक आबादी एक अरब 50 करोड़ हो जाएगी। ऐसे में दूध की मांग लगातार बढ़ती रहेगी।
(एस.पी. मित्तल) (24-10-2016)
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