आखिर किस बात के मुख्यमंत्री हैं अशोक गहलोत। भ्रष्टाचार के आरोपी की पहचान उजागर नहीं करने का मामला।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि उनके अधीन काम करने वाले भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक हेमंत प्रियदर्शी ने 4 जनवरी को जो काला आदेश निकाला है, उसकी जानकारी उन्हें नहीं है। मालूम हो कि प्रियदर्शी ने ब्यूरो के सभी अधिकारियों को आदेशित किया है कि जिन सरकारी कार्मिकों को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा जाए, उनकी पहचान उजागर नहीं की जाए। यानी मीडिया को यह नहीं बताया जाए कि गिरफ्तार कार्मिक का नाम क्या है और न ही फोटो खींचने दिए जाए। एसीबी के कार्यवाहक डीजी हेमंत प्रियदर्शी के इस काले आदेश की जानकारी मुख्यमंत्री को नहीं होने पर ही सवाल उठता है कि अशोक गहलोत किस बात के मुख्यमंत्री हैं? यह सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि गहलोत के पास ही गृह विभाग का भी प्रभार हैं। जो मुख्यमंत्री प्रदेश का गृहमंत्री भी हों, उन्हें अपने ही विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी द्वारा निकाले गए जनविरोधी आदेश की जानकारी न हो, यह बात समझ से परे हैं। ऐसा नहीं कि आदेश किसी छोटे मोटे अधिकारी ने निकाला हो और आदेश किसी एक जिले में लागू हो। हेमंत प्रियदर्शी का आदेश प्रदेशभर में लागू हुआ है और यह आदेश अशोक गहलोत सरकार की इमेज से भी जुड़ा है। सीएम गहलोत भ्रष्टाचार पर सख्त रवैया होने का दावा बार बार करते हैं, लेकिन वहीं उनके अधीनस्थ अधिकारी भ्रष्टाचारियों को बचाने वाला आदेश जारी कर रहे हैं। अब यदि सीएम गहलोत अपने मातहत डीजी के आदेश की जानकारी होने से इंकार कर रहे हैं तो उनके कथन पर भरोसा करना ही पड़ेगा, क्योंकि महात्मा गांधी के अनुयायी अशोक गहलोत सार्वजनिक तौर पर झूठ नहीं बोलेंगे। गहलोत के कथन को सही माने तो प्रियदर्शी ने अपने ही विवेक से काला आदेश जारी कर दिया। यदि ऐसा है तो फिर गहलोत को प्रियदर्शी को एसीबी के डीजी पद से हटाना चाहिए। प्रियदर्शी के आदेश से कांग्रेस सरकार की छवि खराब हुई है। एक ओर भारत जोड़ो यात्रा कर राहुल गांधी भ्रष्टाचार पर हमला कर रहे हैं तो वहीं कांग्रेस शासित राजस्थान में सरकार भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाला आदेश जारी कर रही है। भले ही हेमंत प्रियदर्शी का आदेश सीएम गहलोत की जानकारी में न हो, लेकिन यह आदेश सरकार का कही माना जाएगा। कोई भी अधिकारी सरकार की नीतियों की क्रियान्विति ही करता है। हेमंत प्रियदर्शी तो सीएम गहलोत के भरोसेमंद आईपीएस हैं, इसलिए 2 जनवरी को ही एसीबी का डीजी नियुक्त किया गया। प्रियदर्शी की नियुक्ति बीएल सोनी के स्थान पर की गई। सोनी 31 दिसंबर को पुलिस सेवा से रिटायर हुए। इसमें कोई दो राय नहीं कि सोनी के कार्यकाल में प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा अभियान चला। ऐसे अधिकारियों को भी पकड़ा गया जो सामूहिक तौर पर मासिक रिश्वत वसूलते थे। रंगे हाथों पकड़े गए अधिकारियों के बारे में मीडिया को भी प्रमुखता से जानकारी उपलब्ध करवाई गई। इतना ही नहीं गिरफ्त में आए कार्मिकों के फोटो और वीडियो भी तैयार किए गए। यानी भ्रष्टाचार के आरोपियों की पहचान उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन वहीं अब आरोपियों के मानवाधिकारों की दुहाई देकर भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जा रहा है।
S.P.MITTAL BLOGGER (06-01-2023)
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