इस बार ख्वाजा उर्स में दरगाह के अंदर हरी और सफेद पगड़ी वाले बरेलवी मौलवियों ने तकरीर या नारेबाजी की तो हालात बिगड़ने की आशंका। दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा तथा सोशल मीडिया पर वीडियो भी जारी किया। ख्वाजा साहब की दरगाह को सभी धर्मों के लोगों की आस्था का केंद्र बताया।
हिजरी संवत के रजब माह का चांद दिखने पर इस बार ख्वाजा साहब का 6 दिवसीय सालाना उर्स 22 या 23 जनवरी से शुरू होगा। इससे पहले 18 जनवरी को उर्स का झंडा दरगाह के बुलंद दरवाजे पर चढ़ जाएगा। ख्वाजा साहब के उर्स के दौरान मुस्लिम विद्वानों और धर्मगुरुओं के तकरीर की परंपरा रही है। ऐसी धार्मिक तकरीर दरगाह के अंदर ही अकबरी और शाहजहानी मस्जिदों में होती है। इन तकरीरों में बरेलवी के मौलाना, मौलवी और बरेलवी विचारधारा के विद्वान भी भाग लेते हैं। लेकिन इस बार दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती ने बरेलवी मौलवियों की तकरीर पर एतराज जता दिया है। ख्वाजा साहब की दरगाह में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर नाजिम नियुक्त होते हैं। चिश्ती ने मौजूदा नाजिम समी अहमद को एक पत्र लिख कर हरी और सफेद पगड़ी बांधने वाले बरेली मौलवियों की तरीर पर रोक लगाने की मांग की है। चिश्ती ने बरेलवी विचारधारा की धार्मिक सामग्री के वितरण पर भी रोक लगाने की मांग की है। पत्र लिखने के साथ साथ सरवर चिश्ती ने एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल किया है। इस वीडियो में कहा है कि ख्वाजा साहब की दरगाह सभी धर्मों को मानने वाले लोगों की आस्था का केंद्र है। दरगाह में पिछले आठ सौ सालों से रसूल और नबी की शान में सलाम पढ़े जाते हैं। लेकिन जब कुछ लोग अपनी विचारधारा के अनुरूप तकरीर और अन्य सलाम पढ़ते हैं तो यह दरगाह की परंपराओं के विपरीत होता है। कई बार इससे तनावपूर्ण हालात भी उत्पन्न हो जाते हैं। चिश्ती ने कहा कि जब हम (खादिम) इसका विरोध करते हैं तो हमारे ही खिलाफ फतवे जारी होते हैं। जबकि ऐसी विचारधारा के लोग अपने अनुयायियों को दरगाह नहीं जाने की हिदायत देते हैं। यहां तक कि हमें काफिर तक कहा जाता है। चिश्ती ने कहा कि उर्स के दौरान सुकून बना रहे इसके लिए जरूरी है कि बरेलवी विचारधारा के अनुरूप होने वाली धार्मिक तकरीरों को रोका जाए। दरगाह के खादिमों ने भी बरेलवी तकरीरों पर रोक लगाने की मांग की है। बरेलवी के मौलवियों की तकरीरों और नारेबाजी पर दरगाह में पहले भी एतराज जताया गया है, लेकिन यह पहला अवसर है, जब खादिमों की प्रतिनिधि संस्था ने खुला विरोध किया है। अजमेर प्रशासन के लिए यह चिंता की बात है कि उर्स में बड़ी संख्या में बरेलवी विचारधारा के मुसलमान भी आते हैं। लाखों जायरीन की भीड़ में बरेलवी विचारधारा को मानने वालों की पहचान करना आसान नहीं होगा। यह सही है कि दरगाह के अंदर प्रशासनिक और सुरक्षा के इंतजाम केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी और नाजिम करते हैं, लेकिन दरगाह में धार्मिक रस्तें खादिम समुदाय द्वारा ही की जाती है। खादिम ही आने वाले जायरीन को जियारत करवाते हैं। इस मुद्दे पर यदि प्रशासन और दरगाह कमेटी ने सतर्कता नहीं बरती तो उर्स में हालात बिगड़ भी सकते हैं। सूफी और बरेलवी विचारधारा में काफी अंतर है। बरेलवी मौलवियों के संबंध में सरवर चिश्ती द्वारा जारी वीडियो को मेरे फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर देखा जा सकता है।
S.P.MITTAL BLOGGER (10-01-2023)
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