नई लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से लेकिन अभी तक भी कांग्रेस में अपना नेता नहीं चुना। आखिर राहुल गांधी प्रतिपक्ष का नेता बनने से क्यों हिचक रहे हैं।

18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू हो रहा है, लेकिन अभी तक सदन में प्रतिपक्ष के नेता की घोषणा नहीं हुई है। प्रतिपक्ष का नेता कांग्रेस से बनना है। कांग्रेस संसदीय दल ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर राहुल गांधी को अपना नेता मान लिया है। लेकिन राहुल गांधी ने अभी तक भी नेता का पद स्वीकार नहीं किया है। असल में लोकसभा में इस बार अधिकारिक तौर पर प्रतिपक्ष का नेता बनेगा। 2014 और 2019 में कांग्रेस के पास इतने सांसद नहीं थे कि अधिकारिक तौर पर प्रतिपक्ष के नेता का पद हासिल किया जाए। नियमों के मुताबिक कुल सदस्यों की संख्या का शत प्रतिशत होने पर ही प्रतिपक्ष का नेता बनता है। लेकिन कांग्रेस को 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटें हासिल हुई। जबकि नियमों के मुताबिक कम से कम 54 सांसद चाहिए। इस बार कांग्रेस के सांसदों की संख्या 99 है। इसलिए अधिकारिक तोर पर प्रतिपक्ष का नेता बनेगा। आमतौर पर प्रतिपक्ष के नेता की घोषणा सत्र शुरू होने से पहले ही हो जाती है। सवाल उठता है कि जब कांग्रेस संसदीय सलद ने राहुल गांधी को अपना नेता मान लिया है तो फिर राहुल गांधी को नेता पद को स्वीकार करने में हिचक क्यों है। जानकारों का मानना है कि यदि राहुल गांधी सदन में प्रतिपक्ष के नेता बनते हैं तो संसद में विपक्ष की प्रभावी भूमिका होगी तथा राहुल गांधी को भी अपनी अक्लमंदी दिखाने का अवसर मिलेगा। संसद के नियमों के मुताबिक प्रतिपक्ष के नेता को हर विषय पर बोलने का अधिकार होता है। प्रतिपक्ष का नेता संसद की किसी भी बहस में जब चाहे तब दखल दे सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद में प्रधानमंत्री के बाद प्रतिपक्ष के नेता का महत्व होता है।  ऐसे में प्रतिपक्ष के नेता का पद राहुल गांधी के महत्वपूर्ण है।  वैसे भी इस बार लोकसभा में विपक्ष की स्थिति काफी मजबूत है।  भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए के पास 294 सांसद हैं जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के पास 244 सांसद हैं। 

S.P.MITTAL BLOGGER (23-06-2024)

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