आदिवासियों के हिंदू होने पर बहस की गुंजाइश ही नहीं। भारत की सनातन संस्कृति से जुड़े हैं आदिवासी।

राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने आदिवासियों के हिंदू न होने और डीएनए टेस्ट कराने की बात कह कर बेवजह की बहस करवा दी है। दिलावर के इस बयान से राजस्थान ही नहीं बल्कि राजस्थान की सीमा से लगे गुजरात और मध्यप्रदेश के साथ-साथ देश भर के आदिवासियों में नाराजगी है। समझ में नहीं आता की राजनेता उन विषय पर बयान क्यों देते हैं जो उनकी समझ से परे हैं। जहां तक आदिवासियों के हिंदू होने का सवाल है तो इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। आदिवासी तो आरंभ से ही भारत की सनातन संस्कृति से जुड़े हैं। सनातन संस्कृति दुनिया की एक मात्र संस्कृति है जिसमें पेड़ पौधों को भी जीव माना गया है और पशु पक्षियों की तुलना देवी देवताओं से की गई है। इतना ही नहीं जल, जमीन, हवा, आसमान आदि का भी धार्मिक महत्व बताया गया है। आदिवासी ही इन सब का संरक्षण करते हैं। जो आदिवासी भारत की सनातन संस्कृति के अनुरूप जीवन यापन कर रहे हैं उन्हें हिंदू समुदाय से अलग कैसे माना जा सकता है। इतिहास गवाह है कि जंगल को बचाने के लिए आदिवासियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। मदन दिलावर माने या नहीं लेकिन आदिवासी भी सनातन संस्कृति के सबसे बड़े पक्षधर हैं। आदिवासी नहीं होते तो अब तक भारत के जंगलों का सफाया हो जाता। हम सब जानते हैं कि माल कमाने के लालच में जंगलों को काटा जा रहा है। पेड़ पौधों तालाबों और प्रकृति से जुड़े अन्य स्थानों पर बड़े बड़े कारखाने और बिल्डिंग बनाई जा रही है। जंगलों को काटने के कारण ही आज पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है। जिन क्षेत्रों में गर्मी का अहसास नहीं होता था, वहां भी आज भीषण गर्मी का अहसास किया जा रहा है। इतना ही नहीं अब तो गर्म हवाएं लगातार चल रही है। लेकिन आदिवासियों के कारण जो जंगल बचे हुए हैं, वहां आज भी गर्मी के दिनों में पंखे तक की जरुरत नहीं है। मदन दिलावर को यह भी समझना चाहिए कि आदिवासी भी जंगलों में रहकर हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखे हुए हैं। ऐसे में आदिवासियों के हिंदू न होने पर सवाल उठाना पूरी तरह गलत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता में आदिवासी भी शामिल हैं। मोदी अनेक बार आदिवासियों के बलिदान को जिक्र कर चुके हैं। आदिवासी न केवल हमारे जंगल बचा रहे हैं, बल्कि जरुरत पड़ने पर देश की खातिर बलिदान भी देते हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में भी आदिवासियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई आदिवासी नेताओं ने आजादी की खातिर अपना बलिदान दिया है। आज आदिवासियों के विकास की जरूरत है। सरकार से आदिवासियों की उपेक्षा की है इसलिए अब राजस्थान गुजरात, महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में भील प्रदेश की मांग होने लगी है। हाल ही के लोकसभा में चुनाव में राजस्थान के बांसवाड़ा डूंगरपुर आदिवासी संसदीय क्षेत्र में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। यह भी चिंता का विषय है कि भील प्रदेश की समर्थक भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार राजकुमार रोत की जीत हुई है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (23-06-2024)

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