ख्वाजा साहब की दरगाह में मंदिर होने के प्रकरण में विधानसभा अध्यक्ष देवनानी के बाद भाजपा नेता राजेन्द्र राठौड़ ने भी अदालत के रुख का समर्थन किया। – रजा एकेडमी और सुन्नी जमीयतुल उलेमा के लोग भी अजमेर पहुंचे। – अदालती नोटिस का जवाब देने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर।
अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने के प्रकरण में भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे राजेन्द्र राठौड़ ने भी अदालत के रुख का समर्थन किया है। राठौड ने कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को सिविल अदालत के आदेशों का इंतजार करना चाहिए। अभी तो सिर्फ अदालत ने तीन विभागों को नोटिस जारी किए है। किसी को भी अदालत की कार्यवाही पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। यदि दरगाह परिसर में कुछ गड़बड़ नहीं है तो डरने की जरूरत नहीं है। दरगाह परिसर का सर्वे हो या नहीं इस पर भी अभी अदालत का फैसला नहीं आया है। हम सभी को अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए। इससे पहले अजमेर उत्तरविधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने भी अदालत के रुख का समर्थन किया था। देवनानी का कहना रहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्याय प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए सभी पक्षों को हमारी न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखना चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि ख्वाजा साहब की दरगाह और उसके आसपास का क्षेत्र देवनानी के विधानसभा क्षेत्र में ही आता है। ऐसे में दरगाह प्रकरण में देवनानी का बयान बहुत महत्व रखता है।-मुम्बई के लोग अजमेर पहुंचे:-मुम्बई स्थित रजा एकडेमी और ऑल इंडिया सुन्नी जमीयत उलेमा संगठनों से जुड़े लोग भी अजमेर पहुंच गए हैं। दोनों संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने दरगाह के खादिमों की संस्थाओं के पदाधिकारियों से बात की है। पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों का कहना रहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात की जाएगी। अदालत के नोटिसों को एक तरफ कार्यवाही बताते हुए रजा एकडेमी और सुन्नी जमीयत उलेमा के प्रतिनिधियों ने मांग की कि द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की पालना सख्ती से होनी चाहिए इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सहमति दी है। इसीलिए किसी सिविल अदालत को दरगाह के अंदर मंदिर होने जैसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।-केन्द्र सरकार को देना है जवाब:-हिन्दू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता के वाद पर अजमेर की सिविल अदालत ने गत 27 नवम्बर को केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय, उसके अधीन पुरातत्व काम करने वाली दरगाह कमेटी तथा भारतीय विभाग को नोटिस जारी किए है। बाद में दरगाह परिसर में मंदिर होने का पता लगाने के लिए सर्वे कराने की मांग की गई है। जिन तीनों विभागों को नोटिस जारी किए हैं वे केन्द्र सरकार के अधीन संचालित है। ऐसे में इस प्रकरण में जवाब देने की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की है। तीनों विभागों को आगामी पेशी 20 दिसंबर को जवाब देना है। अदालत के नोटिस के बाद दरगाह में मंदिर होने का प्रकरण देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। मीडिया घराने, ख्वाजा साहब और दरगाह के इतिहास को अपने अपने नजरिए से प्रस्तुत कर रहे है। दरगाह और ख्वाजा साहब का इतिहास 850 वर्ष पुराना है।