सरकार और रेजीडेंट डॉक्टरों की जंग में मरीज बेहाल। प्राइवेट अस्पतालों का उपयोग क्यों नहीं?
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राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार और सरकारी अस्पतालों के रेजीडेंट डॉक्टरों में जोरदार ठन गई है। इस जंग का खामियाजा प्रदेश भर के गरीब मरीजों को उठाना पड़ रहा है। रेजीडेंट डॉक्टरों की परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं थिसिस को बाहर भेजकर जंचवाने के निर्णय के विरोध में 30 मई को रेजीडेंट डॉक्टर अचानक हड़ताल पर चले गए। डॉक्टरों के इस रवैये से खफा सरकार ने 31 मई को एक बड़ा फैसला किया कि 1200 डिप्लोमाधारी डॉक्टरों की भर्ती की जाएगी। अभी हाल ही में प्रथम वर्ष में जिन डॉक्टरों ने प्रवेश लिया है, उन सभी को बर्खास्त कर वेटिंग लिस्ट वाले अभ्यर्थियों को प्रवेश दिए जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने दो टूक शब्दों में कहा है कि रेजीडेंट डॉक्टरों की ब्लेकमेलिंग स्वीकार नहीं की जाएगी। वहीं रेजीडेंट डॉक्टरों ने भी स्पष्ट कह दिया कि सरकार के दबाव में हड़ताल को समाप्त नहीं किया जाएगा।
मरीज बेहाल :
रेजीडेंट डॉक्टरों और सरकार की आपसी लड़ाई का खामियाजा गरीब मरीजों को उठाना पड़ रहा है। भीषण गर्मी के मौसम में सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या पहले ही बढ़ी हुई है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान ही रेजीडेंट डॉक्टर सरकारी अस्पतालों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। रेजीडेंट के हड़ताल पर चले जाने से 31 मई को अजमेर, जयपुर, कोटा, उदयपुर, बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, झालावाड़ आदि के बड़े अस्पतालों में मरीज परेशान होते रहे। सरकार वैकल्पिक इंतजामों का दावा तो कर रही है लेकिन इसके परिणाम अभी सामने नहीं आए हैं। यदि हड़ताल लगातार चलती रही तो आने वाले दिनों में चिकित्सा के अभाव में मरीजों की मौतों का सिलसिला शुरू हो जाएगा।
हड़ताल कितनी उचित :
रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल कितनी उचित है? यह सवाल आज महत्वपूर्ण है। यदि सरकार के किसी फैसले से डॉक्टर नाराज है तो इसका गुस्सा मरीजों पर क्यों उतारा जा रहा हैं? उत्तर पुस्तिकाए राजस्थान से बाहर जंचवाने का निर्णय किसी मरीज ने तो नहीं किया। मरीज की तो इतनी हिम्मत ही नहीं कि वह डॉक्टर के सामने कुछ बोल सके। अच्छा होता कि रेजीडेंट डॉक्टर मरीजोंं का इलाज करते हुए सरकार को सबक सिखाते। मरीजों के कंधों पर बंदूक रखकर सरकार को डराने का काम डॉक्टरों को नहीं करना चाहिए। जहां तक सरकार का सवाल है तो उसे भी मरीजों को मौत के मुंह में ढकेलने से पहले वैकल्पिक इंतजाम करने चाहिए। 31 मई को सरकार ने आग में घी डालने वाला काम किया है।
प्राइवेट अस्पतालों का उपयोग क्यों नहीं? :
रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल के मद्देनजर सरकार को मरीजों के इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों का उपयोग करना चाहिए। जो प्राइवेट अस्पताल रिसर्च के नाम पर सरकार से फायदा उठाते हैं, उन अस्पतालों में मरीजों का इलाज नि:शुल्क होना चाहिए। इतना ही नहीं जिन अस्पतालों ने रियायती दर पर सरकार से भूमि ली है उन्हें भी इस मौके पर सरकार का सहयोग करना चाहिए। अभी तो इसका उल्टा हो रहा है। हड़ताल की वजह से मरीज मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों में जा रहे है। सब जानते है कि प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को किस प्रकार लुटा जाता है। सरकार को चाहिए कि हड़ताल को देखते हुए प्राइवेट अस्पतालों पर निगरानी रखे।
(एस.पी. मित्तल) (31-05-2016)
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