सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फिर फंसी राजस्थान की वसुंधरा सरकार। अब गुर्जरों को अलग से नहीं मिलेगा 5 प्रतिशत आरक्षण।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फिर फंसी राजस्थान की वसुंधरा सरकार। अब गुर्जरों को अलग से नहीं मिलेगा 5 प्रतिशत आरक्षण।
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3 फरवरी को गुर्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार एक बार फिर फंस गई है। राज्य सरकार की याचिका पर कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिए कि भविष्य में गुर्जर, रेबारी, बंजारा, गडरिया और गाडिया लुहार जातियों को अलग से 5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। अलबत्ता पिछले डेढ़ वर्ष में इस आरक्षण के तहत जिन लोगों को लाभ मिल चुका है, उन्हें कोर्ट ने कायम रखा है। यानि इस कोटे में जिन लोगों ने नौकरी हासिल कर ली या किसी शिक्षण संस्थान में प्रवेश ले लिया तो अब उसे हटाया नहीं जाएगा। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रहेगा। मालूम हो कि राजस्थान हाई कोर्ट ने 10 दिसंबर को सरकार की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया था, जिसमें विशेष पिछड़ा वर्ग बना कर गुर्जर सहित 5 जातियों को 5 प्रतिशत आरक्षण अलग से देने की घोषणा की गई थी। हाई कोर्ट के इस आदेश से पिछले डेढ़ वर्ष में जिन लोगों ने लाभ ले लिया था। उन पर भी तलवार लटक गई थी। 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उसमें राज्य सरकार के सामने एक बार फिर संकट खड़ा हो गया है। रेल पटरियों पर बैठ कर आन्दोलन करने वाले गुर्जर समुदाय के लोगों का पहले से ही कहना है कि उन्हें निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण में से 5 प्रतिशत अलग से दिया जाए। चूंकि संविधान में 50 प्रतिशत आरक्षण का ही प्रावधान है इसलिए कोई भी सरकार इससे ज्यादा का आरक्षण नहीं दे सकती। राजस्थान में एससी, एसटी और ओबीसी को पहले से ही 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। सरकार ने गुर्जरों के दबाव में विशेष पिछड़ा वर्ग बनाकर आरक्षण 55 प्रतिशत कर दिया था। एक ओर गुर्जर समुदाय संविधान के दायरे में ही 5 प्रतिशत आरक्षण का दबाव डाल रहा है तो वहीं जाट, मीणा आदि मजबूत जातियों ने सरकार को वर्तमान आरक्षण व्यवस्था से छेड़छाड़ न करने की चेतावनी दे रखी है। कोई जाति नहीं चाहती कि उसके कोटे को काटकर गुर्जर समुदाय को अलग से आरक्षण का लाभ दिया जाए। देखना है कि वसुंधरा राजे सरकार ताजा परिस्थितियों से किस प्रकार निपटती है?
एस.पी.मित्तल) (03-02-17)
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