तो महाराष्ट्र की जनता ने नोटबंदी पर ही मोदी का समर्थन किया। क्या यूपी चुनाव पर पड़ेगा असर? =
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23 फरवरी को महाराष्ट्र की 25 जिला परिषद, 283 जिला पंचायत, 10 नगर निगम तथा मुम्बई महानगर पालिका का चुनाव परिणाम सामने आ गए। अधिकांश परिणाम भाजपा के पक्ष में गए हैं। इन परिणामों से साफ जाहिर है कि महाराष्ट्र के आम मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी योजना का समर्थन किया है। नोटबंदी की घोषणा के बाद पहली बार कोई चुनाव परिणाम सामने आया है। महाराष्ट्र के चुनावों में भी शिवसेना और कांग्रेस ने नोटबंदी को ही मुद्दा बनाया था, लेकिन निकाय चुनावों के परिणाम ने यह प्रदर्शित किया कि नोटबंदी से आम व्यक्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि क्या महाराष्ट्र के परिणाम यूपी के चुनाव पर असर डालेंगे? 23 फरवरी को यूपी में चार चरणों के चुनाव हो गए हैं। अब तीन चरणों में मतदान शेष है। यदि महाराष्ट्र के मतदाताओं और यूपी के मतदाताओं का मूड एकसा है तो फिर यूपी के परिणाम भी महाराष्ट्र की तरह ही सामने आएंगे। यूपी में तो भाजपा को पहले से पता था कि उसे अकेले मैदान में उतरना है, लेकिन महाराष्ट्र में तो ऐन मौके पर शिवसेना से गठबंधन टूटा। शिवसेना से अलग होकर चुनाव लडऩे पर भी भाजपा को जो सफलता मिली है, उसका श्रेय नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडऩवीस को भी जाता है। फडऩवीस ने अकले ही पूरे महाराष्ट्र में प्रचार किया। फडऩवीस ने यह प्रदर्शित किया यदि आगामी विधानसभा का चुनाव भी भाजपा अकेले लड़ती है तो उसे ज्यादा फायदा होगा। अकेले मुम्बई महानगर पालिका के परिणाम से भाजपा की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। 227 वार्डों में से शिवसेना को भले ही 84 वार्डों में सफलता मिली हो, लेकिन भाजपा भी 81 वार्डों में जीती है, जबकि गत बार यहां मुश्किल से 31 वार्डों में ही भाजपा को सफलता मिली। महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में कांग्रेस का तो पूरी तरह सूपड़ा साफ हो गया। शरद पंवार की एनसीपी फिर भी एक नगर निगम में बहुमत पा सकती है,लेकिन कांग्रेस के खाते में तो एक भी नहीं है। इतनी बुरी दशा के बाद ही संजय निरुपम ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।
सब जानते हैं कि यूपी चुनाव में राहुल गांधी, अखिलेश यादव और मायावती ने भाजपा के खिलाफ नोटबंदी मुद्दा ही रखा है, लेकिन महाराष्ट्र के मतदाताओं ने जता दिया कि यह मुद्दा सिर्फ विपक्ष के नेता का है। नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने जो भी हमले किए, उसका जवाब नरेन्द्र मोदी ने यही दिया कि इससे आम व्यक्ति को फायदा होगा। शायद अब यूपी में विपक्ष को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।
मुम्बई तक सिमटी शिवसेना:
निकाय चुनाव के परिणाम ने शिवसेना को भी सिर्फ मुम्बई महानगर तक ही सीमित कर दिया है। शिवसेना प्रमुख अद्भव ठाकरे जितना बढ़-चढ़ कर बोल रहे थे, उतना ही परिणाम ने ठाकरे को जमीन पर ला दिया है। अच्छा होता कि ठाकरे भाजपा के साथ रह कर शिवसेना का विस्तार सम्पूर्ण महाराष्ट्र में करते। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अद्धव ठाकरे ने हालातों को सही आकंलन नहीं किया। अब महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना की जरुरत नहीं है। ठाकरे ने यह घोषणा की थी कि निकाय चुनाव के बाद केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकारों से समर्थन वापस ले लिया जाएगा। लेकिन जो परिणाम आज सामने आए हैं उससे लगता है कि यदि समर्थन वापस लिया जाता है तो शिवसेना के सांसद और विधायक बगावत कर देंगे। शिवसेना के सांसद और विधायकों को अब अपना भविष्य भाजपा में ही नजर आ रहा है।
एस.पी.मित्तल) (23-02-17)
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