सरकारी स्कूल के निजीकरण का फैसला सरकार की अपनी ही उपलब्धियों पर पानी फेरने वाला है। राजस्थान में पहले चरण में 300 स्कूलें छिनेंगी। धरे रह गए देवनानी के प्रयास। ==========
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राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे ने कई बार दावा किया कि सरकार के नवाचार की वजह से सरकारी स्कूलों की हालत सुधरी है तथा अब सरकारी स्कूल भी प्राइवेट स्कूलों के बराबर खड़े हो गए हैं। लेकिन पांच सितम्बर को सरकार ने प्रदेश की 300 सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला ले लिया। प्रदेश में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर की करीब दस हजार स्कूलें हैं। पहले चरण में तीन सौ स्कूलों का निजीकरण किया जा रहा है। यह स्कूलें पीपीपी माॅडल के अंतर्गत संचालित होंगी। सवाल उठता है कि जब सरकारी स्कूलें प्राइवेट के बराबर खड़ी हो रही थी, तब सरकार ने स्कूलों के निजीकरण का फैसला क्यों लिया? सब जानते हैं कि प्राइवेट स्कूल वाले किस तरह अभिभावकों को लूटते हैं। सरकार द्वारा सख्त कानून बनाने के बाद भी प्राइवेट स्कूलों के मालिक बाज नहीं आ रहे हैं। अब जब सरकारी स्कूल भी लूटने वालों को ही सौंप दिए जाएंगे तो अभिभावकों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सरकारी स्कूलों के पास बहुत जमीन है। और ऐसी स्कूलें प्रमुख शहरों के बीचों बीच बनी हुई है। स्वाभाविक है कि सरकार अपने बेशकीमती जमीनों और भावनों को पूरी तरह निजी हाथों में सौंप देगी। हालांकि अभी पीपीपी माॅडल की नीति सामने नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि यह नीति शिक्षा माफिया के हितों में ही होगी।
धरे रह गए देवनानी के प्रयासः
प्रदेश के सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने के लिए स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने भी बहुत प्रयास किए। कभी मिनस्टर आॅन व्हिल तो कभी स्कूलों में जा कर मिड डे मिल की जांच जैसे काम किए गए। देवनानी ने खुद स्कूलों में जाकर बच्चों की बुद्धिमत्ता को जांचा। स्कूलों के समानीकरण में भी देवनानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काउंसलिंग के जरिए शिक्षकों की नियुक्ति कर शिक्षा विभाग को पारदर्शी बनाने की कोशिश भी की गई। देवनानी ने स्वयं ने भी कई बार दावे किए कि अभिभावकों का रुझान अब सरकारी स्कूलों की ओर हो रहा है। यहां तक कि स्कूलों में पेंरेट्स टीचर मिटिंगभी शुरू की गई। सरकार के ताजा फैसले से देवनानी के प्रयास भी धरे रह गए हैं।
मंत्री को भी नहीं थी जानकारीः
सरकारी स्कूलों का निजीकरण होगा। शायद इसकी जानकारी स्कूली शिक्षा मंत्री देवनानी को भी नहीं थी। पांच सितम्बर को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सबसे विश्वास पात्र पंचायतीराज मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने अपने ही अंदाज में मीडिया को निजीकरण की जानकारी दी। देवनानी के लिए यह आश्चर्यचकित करने वाली बात रही कि जब पांच सितम्बर को प्रदेश भर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा था, तभी सरकार ने स्कूलों के निजीकरण का फैसला किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सीएम ने राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह में भी भाग नहीं लिया था।
एस.पी.मित्तल) (06-09-17)
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