तो विपक्ष की फूट से ही जीत सकती है भाजपा। उपचुनाव के नतीजों का निष्कर्ष। 11 में से 10 विधानसभा 4 में से 2 लोकसभा क्षेत्रों में हार गई भाजपा। कैराना में संयुक्त विपक्ष की जीत मायने रखती है।
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31 मई को देश के चार लोकसभा और 11 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों के नतीजे घोषित हुए भाजपा को दो लोकसभा तथा मात्र एक विधानसभा क्षेत्र में सफलता मिली। जबकि शेष जगहों पर हार का सामना करना पड़ा। उपचुनाव के नतीजों का यही निष्कर्ष निकलता है जब विपक्ष बंटा हुआ होता है तो भाजपा की जीत हो जाती है, लेकिन जब कांग्रेस सहित छोटे बड़े सभी दल एक होकर चुनाव लड़ते हैं तो फिर मोदी लहर भी धरी रह जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूपी के कैराना लोकसभा और नुरपुर विधानसभा क्षेत्र में विपक्ष की जीत से मिलता है। कैराना में सपा और बसपा ने आरएलडी की उम्मीदवार तबस्सुम को समर्थन दिया तो भाजपा की हार हो गई। इसी प्रकार नुरपुर में सपा उम्मीदवार की जीत हुई। महाराष्ट्र में पालघर में राजेन्द्र गावित की जीत से भाजपा को थोड़ी राहत मिली, वहीं नागालैंड में भी एडीए के गठबंधन की जीत हुई है। लेकिन महाराष्ट्र के भंडारा लोकसभा सीट पर कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन को जीत मिली। विधानसभा क्षेत्रों में उत्तराखंड में भाजपा जीती है, तो बिहार, पंजाब, केरल, कर्नाटक मेघालय, पश्चिम बंगाल, झारखंड आदि राज्यों में विपक्ष के उम्मीदवार जीते हैं। बिहार में जोकीहाटा सीट पर सीएम नितीश कुमार की लाख कोशिश के बाद भी सफलता नहीं मिली। लालू प्रसाद यादव ने जेल में बैठे बैठे ही अपनी पार्टी के उम्मीदवार को 41 हजार वोटों से जितवा दिया।
आत्म विश्लेषण करे भाजपाः
हालांकि भाजपा के नेताओं को आलोचना सुहाती नहीं है, इसलिए मीडिया पर अभी से ही उपचुनावों की हार के कुतर्क दिए जा रहे हैं। कर्नाटक में गत दिनों जब जेडीएस के कुमार स्वामी ने मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली थी, तब देशभर के विपक्षी दलों के नेता एकजुट हुए थे। तब विपक्ष ने यह संकल्प लिया था, अब भाजपा के खिलाफ एक जुट होकर चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि विपक्ष की ऐसी एकता कोई मायने नहीं रखती है, क्योंकि इन्हीं दलों में 2014 में भी भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन अमितशाह को यह समझना चाहिए कि 2014 में विपक्ष बिखरा हुआ था। यूपी में मायावती, अखिलेश यादव आपस में लड़ रहे थे। लेकिन अब अखिलेश और मायावती के दल एकजुट हो गए हैं। इस एकजुटता का अंदाजा कैराना में आरएलडी की उम्मीदवार की जीत से लगाया जा सकता है। यानि विपक्ष के गठबंधन में आरएलडी जैसे दल को भी महत्व दिया जा रहा है। जबकि वहीं महाराष्ट्र में समान विचार होने के बाद भी भाजपा की शिवसेना के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। यह माना कि इस समय भाजपा को संसद में पूर्ण बहुमत है और देश के बीस राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। लेकिन उपचुनाव के नतीजे बताते हैं कि इस समय लोकसभा में भाजपा के पास बहुमत से मात्र तीन सांसद ज्यादा है। इसी प्रकार इसी वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ेगा। भाजपा के नेता माने या नहीं, लेकिन इन राज्यों में सत्ता विरोधी माहौल बना हुआ है। राजस्थान में तो पिछले डेढ़ माह से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का पद ही खाली पड़ा है। सीएम वसुंधरा राजे जयपुर में रहने के बजाए जिला स्तर पर दौरे कर रही हैं। ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट हुई है। आज भी मोदी की जनसभाओं में भीड़ उमड़ती है, लेकिन विपक्ष के एकजुट होने से भाजपा की सत्ता को खतरा उत्पन्न हो गया है।