काश! विपक्ष में रहते महबूबा मुफ्ती ऐसा बयान देतीं। अब अफसोसनाक यह है कि अमर अब्दुल्ला बोल रहे है महबूबा की भाषा।
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कश्मीर के ताजा हालातों पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का एक मार्मिक बयान सामने आया है, इस बयान में महबूबा ने कहा है कि युवाओं के हिंसक वारदातें करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। जिन युवाओं की पहले जान गई, उनके अभिभावक आज तक समस्याओं से जूझ रहे हैं। हिंसा का खामियाजा केवल अभिभावकों को ही भुगतना पड़ता है। ताजा हिंसा में मारे गए युवाओं के अभिभावकों के प्रति संवेदना जताते हुए महबूबा ने कहा है कि मैं स्वयं भी मां हंू और मुझे एक मां का दर्द समझना आता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान परिस्थितियों में महबूबा का बयान बहुत ही उचित है, लेकिन अच्छा होता कि महबूबा यह बयान तब देतीं, जब कश्मीर में उमर अब्दुल्ला का शासन था। सब जानते हैं कि विपक्ष में रहते हुए महबूबा ने हमेशा अलगाववादियों की हिमायत की। महबूबा माने या नहीं लेकिन यह हकीकत है कि विपक्ष में रहते हुए उनके बयानों से जो हालात बने, उसके परिणाम आज स्वयं महबूबा को भुगतने पड़ रहे है। यदि विपक्ष में रहते महबूबा युवाओं की हिंसक घटनाओं को जायज नहीं ठहराती तो आज कश्मीर के हालात दूसरे होते। अफसोसनाक बात तो यह है कि अब महबूबा मुफ्ती की भाषा उमर अब्दुल्ला बोल रहे हैं। क्योंकि अब उमर अब्दुल्ला विपक्ष में है। असल में कश्मीर में राजनीतिक दल अपने-अपने नजरिए से मुस्लिम युवकों को इस्तेमाल करते हैं। उमर अब्दुल्ला को यह समझना चाहिए कि पांच वर्ष बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं। तब उन्हें महबूबा मुफ्ती की ही जरुरत पड़ेगी। महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला को कश्मीर की राजनीति में अभी युवा माना जा सकता है। इन दोनों को ही राजनीति और मुख्यमत्री का पद विरासत में मिला है। ऐसे में कश्मीर की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ये दोनों युवा नेता हालात को सुधार सकते हैं। महबूबा और उमर अब्दुल्ला दोनों यह अच्छी तरह समझ लें कि कश्मीर में उनका महत्त्व तभी तक है, जब तक कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है।
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(एस.पी. मित्तल) (13-07-2016)
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