चुनावी मौसम में अजमेर जिले में पियक्कड़ों की पौ बारह।
रात 8 बजे बाद भी खुली रहती है शराब की दुकानें।
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अजमेर जिले में भी सात दिसम्बर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। चुनावी मौसम में वैसे ही शराब की बिक्री बढ़ जाती है। हाल ही में आबकारी विभाग ने अनेक बस्तियों में जाकर उन भट्टियों को तोड़ डाला, जहां कच्ची शराब तैयार हो रही थी। असल में पुलिस और आबकारी विभाग भी नहीं चाहते कि चुनावी मौसम में अवैध रूप से तैयार शराब की बिक्री हो। क्योंकि इससे सरकार की अधिकृत दुकानों पर शराब की बिक्री पर असर पड़ता है। सरकार के सामाजिक सरोकारों के तहत शराब की दुकानें रात 8 बजे बंद करने का निर्णय ले रखा है। लेकिन सरकार के इस आदेश की धज्जियां अजमेर जिले में धड़ल्ले से उड़ रही है। शराब की दुकानें प्रमुख बाजारों और प्रमुख मार्गों पर है, लेकिन अबकारी और पुलिस विभाग के अधिकारियों को रात 8 बजे बाद खुली दुकानें नजर नहीं आती हैं। शहरी क्षेत्र में रात 9-10 बजे तक और ग्रामीण क्षेत्रों में तो रात भर अधिकृत दुकानों पर अवैध तरीके से बिक्री होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में दुकानों का निर्माण इस तरह किया गया है कि जिसमें दरवाजा नहीं होता, चूंकि सुरक्षा की दृष्टि से सेल्समैन रात भर दुकान के अंदर रहते हैं, इसलिए पीयक्कड़ देर रात तक शराब खरीदते रहते हैं। चूंकि इन दिनों चुनाव का माहौल है इसलिए शराब की अवैध बिक्री पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। प्रशासन के बड़े अधिकारी भी चुनाव कार्यो में व्यस्त है। इसलिए पीयक्कड़ों के साथ-साथ आबकारी और पुलिस विभाग की भी पौ बारह हो रही है। किशनगढ़ शहर हो या हमारा स्मार्ट सिटी वाला अजमेर शहर, ब्यावर हो या छावनी बोर्ड का नसीराबाद सभी जगहों पर रात आठ बजे बाद शराब की बिक्री होना बताया जा रहा है। सब जानते है कि अधिकृत लाइसेंस धारी किन परिस्थितियों में रात आठ बजे दुकानें खुली रखते हैं। कई बार आबकारी विभाग दुकानों को 8 बजे बाद बंद करवाने की छापामार कार्यवाही करता है। लेकिन यह कार्यवाही मात्र दिखावा होती है। पुलिस यह कह कर अपनी जिम्म्ेदारी से बच जाती है कि उसके पास अधिकार नहीं है। जबकि सब जानते हैं कि संबंधित चैकी और थाने की मेहरबानी नहीं हो तो कोई भी दुकान रात 8 बजे बाद नहीं खुल सकती। सरकार माने या नहीं, लेकिन शराब की वजह से सामाजिक ताना बाना बिगड़ रहा है। सरकार को जितनी आया शराब की बिक्री से होती है उससे ज्यादा की राशि शराबियों की बीमारियों पर खर्च करनी पड़ती है। शराब परिवार का एक सदस्य पीता है, लेकिन खामियाजा पूरे परिवार को उठाना पड़ता है। सबसे ज्यादा महिला सदस्यों को परेशानी होती है।