लोकसभा में हूड़दंग करना अब विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।
लोकसभा में हूड़दंग करना अब विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।
ओम बिड़ला को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित कर मोदी-शाह की जोड़ी ने फिर चौंकाया।
राजस्थान की राजनीति पर पड़ेगा असर। कोटा से ही गुजर रही है चम्बल नदी।
18 जून को राजस्थान के कोटा के सांसद ओम बिड़ला को भाजपा ने लोकसभा अध्यक्ष का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। चूंकि लोकसभा में 542 में से 303 भाजपा के सदस्य हैं, इसलिए बिड़ला के अध्यक्ष चुनने में कोई संशय नहीं है। सर्वसम्मति से चयन के लिए आंध प्रदेश की वाईएसआर और उड़ीसा की बीजेडी ने भाजपा उम्मीदवार को समर्थन दे दिया है। बिड़ला को उम्मीदवार बना कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है। 17 जून की रात तक कहा जा रहा था कि आठ बार के सांसद संतोष गंगवार और श्रीमती मेनका गांधी में से किसी एक को लोकसभा का अध्यक्ष बनाया जाएगा लेकिन मोदी शाह की जोड़ी ने दूसरी बार के सांसद बिड़ला को उम्मीदवार घोषित कर दिया। इतने जूनियर सांसद को लोकसभा का अध्यक्ष बनाने के पीछे क्या मापदंड रहे, यह तो मोदी-शाह ही बता सकते हैं। लेकिन इतना जरूर है कि अब लोकसभा में हूड़दंग करना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। बिड़ला भले ही दूसरी बार सांसद बने हों, लेकिन बहुत सख्त मिजाज के हैं। जिन लोगों ने कोटा में बिड़ला की राजनीति देखी है उन्हें पता है कि कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले हाड़ौती क्षेत्र में राजनीति करना आसान नहीं है। कोटा के हाड़ौती क्षेत्र से ही चम्बल नदी गुजरती है। चम्बल के किनारे बीहड़ों के किस्से किसी से छिपे नहीं है। बिड़ला तीन बार विधायक भी रहे हैं और एक बार तो कांग्रेस के दिग्गज शांति धारीवाल को हराया है। धारीवाल वर्तमान में राजस्थान के नगरीय विकास मंत्री हैं। यानि लोकसभा में विपक्ष के किसी सांसद ने माहौल खराब करने की कोशिश की तो नियमों के तहत मार्शल का इस्तेमाल करने में कोई देरी नहीं होगी। यह लिखने की जरुरत नहीं कि बिड़ला की वफादारी किसके प्रति होगी। वैसे भी मौजूदा सत्र बहुत महत्वपूर्ण होगा। तीन तलाक का बिल इसी सत्र में पेश होना है। आने वाले समय में संवैधानिक दृष्टि से लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका देश की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण होगी। बिड़ला की नियुक्ति के दूरगामी परिणाम होंगे।
राजस्थान पर असर:
ओम बिड़ला के लोकसभा अध्यक्ष बनने का असर राजस्थान की राजनीति पर भी पड़ेगा। दिसम्बर 2018 तक राजस्थान में भाजपा की राजनीति में वसुंधरा राजे एक मात्र नेता थीं। राजे की सिफारिश से ही केन्द्र में मंत्री बनते थे। राजस्थान के भाजपा नेताओं का राजनीतिक भविष्य राजे के हाथ में ही था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। जिन गजेन्द्र सिंह शेखावत को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनने से रोका गया, वहीं शेखावत आज केन्द्र में जल शक्ति मंत्रालय के केबिनेट मंत्री हैं। कैलाश चौधरी जैसे प्रथम बार के सांसद को राज्यमंत्री बना दिया गया है। अब ओम बिड़ला जैसे जूनियर सांसद को लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दिया गया है। यानि अब राजस्थान में कई नेता राष्ट्रीय स्तर के हो गए हैं। अब मुख्यमंत्री पद के एक नहीं बल्कि कई दावेदार हैं। दावेदार भी ऐसे जो संगठन को महत्व देते हैं। जिन नेताओं ने स्वयं को संगठन से बड़ा माना, अब वो बौने हो गए हैं। बदली हुई परिस्थितियों में अब उनकी कोई पूछ नहीं है। शायद इन हालातों को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी समझ रही होंगी।
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