वसुंधरा राजे पर की गई मेहरबानी को अशोक गहलोत बार-बार गिनाएंगे। आखिर इतना मोह क्यों है सरकारी बंगले से?
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6 सितम्बार को पूरे दो दिन गुजर जाने के बाद भी हाईकोर्ट के फैसले पर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे ने कोई टिप्पणी नहीं की है। 4 सितम्बर को हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ के न्यायाधीश प्रकाशचंद गुप्ता ने फैसला दिया था कि पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगले एवं अन्य सुविधाओं के हकदर नहीं है। कोर्ट के इस फैसले के बाद वसुंधरा राजे को जयपुर में सिविल लाइन क्षेत्र का सरकारी बंगला संख्या 13 खाली करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस सरकार के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह कह कर वसुंधरा का बचाव किया कि सरकार वसुंधरा की वरिष्ठता और विधायक होने का ध्यान में रखते हुए 13 नम्बर बंगला ही दोबारा से आवंटित कर सकती है। यानि वसुंधरा को उसी बंगले में बनाए रखा जाएगा, जो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से स्वयं ने हथियाया था। सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए वसुंधरा ने नियमों के विरुद्ध जाकर बंगला संख्या 13 पर कब्जा कर लिया था और बाद पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से यही बंगला अलॉट करवा लिया। अब यदि सीएम गहलोत कोई गली निकाल कर वसुंधरा को इसी बंगले में बनाए रखते हैं तो ऐसी मेहरबानी को गहलोत बार बार गिनाएंगे। कर्नाटक में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार की गिरफ्तार हो या फिर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम को तिहाड़ जेल भेजने का मामला हो, गहलोत केन्द्र सरकार पर राजनीतिक द्वेषता से काम करने का आरोप लगाया है। अब अशोक गहलोत कह कहते हैं कि कांग्रेस तो हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को सरकारी बंगले में बनाए हुए हैं, जबकि भाजपा की सरकार कांग्रेस के नेताओं को तंग कर रही है। सब जानते हैं कि अहसान जताने में गहलोत हमेशा आगे रहते हैं। आने वाले दिनों में गहलोत वसुंधरा के बंगले को बड़ा मुद्दा बनाएंगे। वसुंधरा राजे की कोई प्रतिक्रिया अभी तक भी सामने नहीं आने से प्रतीत होता है कि धौलपुर घराने की महारानी अब अशोक गहलोत की मेहरबानी से सरकारी बंगले में ही रहना चाहती है।