तो अजमेर नगर निगम के निकम्मे अफसर के खिलाफ कार्यवाहीं क्यों नहीं करते मंजीत सिंह। इस भाषा के मायने क्या है?

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इस बार राजस्थान का राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह अजमेर में होना है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे स्वयं तीन दिनों तक अजमेर में रहेंगी। इस सिलसिले में 9 जुलाई को प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव मंजीत सिंह ने अजमेर का तूफानी दौरा किया। इसी दौरे में कलेक्ट्रेट के सभागार में हुई बैठक में मंजीत सिंह ने नगर निगम के अधिकारियों को निकम्मा कह कर संबोधित किया। इस बैठक में नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत भी उपस्थित थे। आम तौर पर गहलोत अपने निगम के अधिकारियों का बचाव करते हैं, लेकिन 9 जुलाई को गहलोत भी खामोश रहे। सवाल उठता है जब मंजीत सिंह निगम प्रशासन को निकम्मा मानते हैं तो फिर निकम्मे अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं करते? मंजीत सिंह स्थानीय निकाय संस्थाओं के सर्वोच्च अफसर हैं। यूं देखा जाए तो अफसरों को निकम्मा बनाने का दायित्व मंजीत सिंह का भी है। यदि अफसरों के खिलाफ पहले ही कार्यवाही हो जाए तो फिर अफसर निकम्मे बनेंगे ही नहीं। सवाल यह भी उठता है कि आखिर मंजीत सिंह ने इस भाषा का इस्तेमाल क्यों किया? क्या इसके पीछे कोई स्वार्थ का नजरिया है। सब जानते हंै कि स्थानीय निकाय के अधिकांश अधिकारी कितने भ्रष्ट होते है। यदि मंजीत सिंह का नजरिया ईमानदारी पूर्ण हैं तो उन्हें निकम्मे अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए अन्यथा इस भाषा को लेकर सवाल उठेंगे।
निगम में निर्वाचित जन प्रतिनिधि :
मंजीत सिंह ने भले ही निगम प्रशासन को निकम्मा कहा हो, लेकिन उन्हें यह भी ख्याल रखना चाहिए कि निगम में निर्वाचित जन प्रतिनिधि भी हैं। यह माना कि प्रतिनिधियों की छवि भी साफ सुथरी नहीं है, लेकिन किसी नौकरशाह के द्वारा पूरी संस्था को ही निकम्मा बता देना, उचित नहीं माना जा सकता। मंजीत सिंह को भी पूरा यकीन है कि उनके इस बयान पर किसी भी पार्षद को गुस्सा नहीं आएगा क्योंकि मंजीत सिंह अजमेर के पार्षदों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। पहले भी मंजीत सिंह और पार्षदों के बीच आरोप-प्रत्यारोप लग चुके हंै। गंभीर बात यह है कि मंजीत सिंह ने निगम प्रशासन को तब निकम्मा बताया है जब निगम पर भाजपा का कब्जा है और राज्य में भी भाजपा की सरकार है।
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(एस.पी. मित्तल) (10-07-2016)
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