अजमेर नगर निगम ने 25 दुकानों पर लगाए ताले। अवैध निर्माणों पर अवमानना के मामले में 20 अक्टूबर को हाईकोर्ट में सुनवाई।

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20 अक्टूबर को हाईकोर्ट में अजमेर के अवैध निर्माणों के मामले में दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई होनी है। इससे एक दिन पहले 19 अक्टूबर को अजमेर नगर निगम ने केसर गंज क्षेत्र में बनी 25 अवैध दुकानों को सीज कर दिया है। यानि इन दुकानों पर ताले लगा दिए गए हैं। इन दुकानों का निर्माण गोविंद अग्रवाल के पुत्र विकास अग्रवाल और विनोद अग्रवाल ने किया है। निर्माण के साथ ही अधिकांश दुकानों को अग्रवाल बंधुओं ने बेच दिया। ऐसे में सीज की मार उन व्यक्तियों को झेलनी पड़ रही है, जिन्होंने लाखों रुपए देकर अग्रवाल बंधुओं से दुकानें खरीदी थी। यह बात अलग है कि ऐसे व्यक्तियों को अवैध दुकानें नहीं खरीदनी चाहिए थी। 19 अक्टूबर को निगम के अधिकारियों ने बिना किसी विरोध के 25 दुकानों पर ताले लगा दिए। निगम द्वारा चस्पा किए गए नोटिस में कहा गया है कि सीज की यह कार्यवाही आगामी 90 दिनों के लिए की गई है। इस अवधि में यदि किसी व्यक्ति ने ताले तोड़कर दुकानें खोली तो उसके विरुद्ध पुलिस कार्यवाही की जाएगी। निगम ने भले ही 25 दुकानों को सीज कर दिया गया हो, लेकिन सवाल उठता है कि जब इन दुकानों का निर्माण हो रहा था, तब निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने कार्यवाही क्यों नहीं की? सब जानते हैं कि जिम्मेदार अधिकारी चांदी के जूते खाकर आंखें बंद कर लेते हैं। क्षेत्रीय पार्षद भी अवैध निर्माणों पर चुप्पी साध लेते हैं। यदि हाई कोर्ट में 20 अक्टूबर को अवमानना की याचिका पर सुनवाई नहीं होती तो अभी भी सीज की कार्यवाही नहीं होती। असल में अवैध निर्माण के मामले में जब तक जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं होगी, तब तक अवैध निर्माण रुक नहीं पाएंगे। शर्मनाक बात तो यह है कि इस समय भी धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहे हैं। आना सागर के भराव क्षेत्र में रोक के बाद भी बड़ी-बड़ी होटले बन रही हंै। वैशाली नगर में राजस्थान पत्रिका के कार्यालय के निकट ही अवैध तौर पर होटल का निर्माण कर लिया गया है। यह अवैध होटल कमजोर आंखों वाले व्यक्ति को भी दिख रही है, लेकिन संबंधित अधिकारियों को वजह नहीं आ रही। यानि एक तरफ पुरानी दुकानों को अवैध मान कर सीज किया जा रहा है तो दूसरी ओर अवैध निर्माण की खुली छूट दे दी गई है।
20 अक्टूबर को जब हाईकोर्ट में अवमानना याचिका पर सुनवाई होगी तो देखना होगा कि संबंधित अधिकारियों का क्या रुख रहता है। पूर्व में हाईकोर्ट ने जो 490 अवैध निर्माणों को तोडऩे अथवा सीज करने के जो आदेश दिए थे, उसमें से मुश्किल से 10 प्रतिशत पर ही अमल हो पाया है। लेकिन पिछले दो वर्षों में जो नए अवैध निर्माण हो गए हैं, उसकी जानकारी अभी हाईकोर्ट को भी नहीं है। अच्छा हो कि हाईकोर्ट नए सिरे से अवैध निर्माणों को चिह्नित करवावे। यदि वर्तमान स्थिति में अवैध निर्माण चिह्नित होते हैं तो जिम्मेदार अधिकारियों को जेल जाना पड़ेगा।

(एस.पी. मित्तल) (19-10-2016)
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