शंकराचार्य पीठ की तरह समर्पण ध्यान के भी शक्तिपीठ बनेंगे देश में। अजमेर के अरड़का में शिवकृपानंद स्वामी ने देश ने दूसरे पीठ का भूमि पूजन किया।
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समर्पण ध्यान के प्रणेता शिवकृपानंद स्वामी ने कहा कि जिस प्रकार आदि शंकराचार्य ने धर्म के प्रचार के लिए भारतवर्ष में चार शंकराचार्य पीठ स्थापित की। उसी प्रकार समर्पण ध्यान की ओर से भी देश में शक्ति पीठ स्थापित की जा रही है। इन शक्तिपीठ से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर मनुष्य अपना जीवन तनाव मुक्त और सरल बना सकता है। बाबा स्वामी ने 23 नवम्बर को अजमेर के निकटवर्ती अरड़का गांव में देश के दूसरे शक्तिपीठ स्थल का भूमि पूजन किया। भूमि पूजन के बाद एक भव्य समारोह में समर्पण ध्यान के साधकों को संबोधित करते हुए बाबा स्वामी ने कहा कि आज भले ही यह स्थान उजाड़ और जंगल नजर आ रहा हो, लेकिन अगले वर्ष दीपावली तक इसी जंगल में शक्तिपीठ माने जाने वाला भव्य गादी स्थान बनकर तैयार हो जाएगा। मैं किसी एक स्थान पर ऊर्जा को केन्द्रित करने के पक्ष में नहीं हूं। इसलिए मुंबई में डांडी के बाद अजमेर में आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बनाने जा रहा हूं। आमतौर पर किसी सद्पुरुष के निधन के बाद उसकी समाधि अथवा प्रतिमा ऊर्जा का केंद्र बनती है, लेकिन मैं जीवित रहते हुए ही अपनी प्रतिमा को ऊर्जा का केंद्र बना रहा हूं। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि तीसरा ऊर्जा का केंद्र कहां बनेगा, लेकिन इतना जरूर है कि अरड़का का यह केंद्र अजमेर में अपने वाले दिनों में एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल बनेगा। मैं चाहता हूं कि लोग ऐसे केन्द्र पर आकर समर्पण और ध्यान के माध्यम से अपने कष्टों को दूर करें और जीवन को सरल बनाएं। यह माना कि मन और बुद्धि पर नियंत्रण करना कठिन होता है, लेकिन मैं आपसे दिनभर में मात्र 30 मिनट मांग रहा हूं। कोई भी व्यक्ति 30 मिनट मेरा ध्यान कर बैठे तो उसे आध्यात्मिक अनुभूति होगी। आप सिर्फ 30 मिनट ध्यान की मुद्रा में बैठे, बाकि मुझ पर छोड़ दें। बाबा स्वामी ने कहा कि समर्पण ध्यान के दो चक्र है। एक नियमितता और दूसरा सामूहिकता। सामूहिकता में आप अपनी ऊर्जा को जितना बांटेंगे, उतना वह बढ़ती चली जाएगी। साधक को तालाब का नहीं, नदी का पानी बनना चाहिए।
बाबा स्वामी ने साधकों के सामने अपना स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि मैं 15 साल पहले तक रोडवेज की बसों में सफर करता था, लेकिन आज मेरे पास मंहगी से मंहगी 15 कारें हैं। इसमें मर्सडीज जैसी कार भी शामिल है। जब मैं प्रगति कर सकता हूं तो फिर मेरे साधक क्यों नहीं? असल में मैंने जो आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त की है उसे सामूहिकता के सिद्धांत पर बांटा। यदि साधक भी ऐसे ही करेंगे तो उनकी प्रगति हो जाएगी। सवालों के जवाब
प्रवचन के बाद बाबा स्वामी ने साधकों के सवालों के जवाब भी दिए। जैन मुनियों के कठोर तप के सवाल पर बाबा स्वामी ने कहा कि जैन मुनि के तप को उपवास माना जाना चाहिए। आज हम जैन मुनियों की जो ख्याति देख रहे हैं, उसके पीछे भी समर्पण की भावना है। अनेक जैन मुनि 500 किमी. पैदल चलकर मुझसे मिलने आते हैं। इससे साधकों को प्रेरणा लेनी चाहिए। बाबा स्वामी ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि मनुष्य को पूर्व जन्म के कर्म भोगने पड़ते हैं, लेकिन यदि ऐसा व्यक्ति मुझे गुरु मान कर जीवन व्यतीत करें तो उसकी पीड़ा कम जो जाएगी। मैं गुरु मानने की बात इसलिए कह रहा हूं कि इस जन्म में गुरु का साथ होने के कारण व्यक्ति कोई गलत कार्य नहीं करेगा। मैंने भी 45 वर्ष की उम्र तक पूर्व जन्म के कष्ट भोगे, लेकिन कष्ट के समय मैं अपने गुरु के सानिध्य में रहा। जीवन में गुरु का होना बहुत महत्व रखता है। एक साधक ने सवाल के अंदाज में बाबा स्वामी को बताया कि मैं पूर्व में गायत्री परिवार से जुड़ा था और पंडित श्रीराम शर्मा को अपना गुरु मानता था, लेकिन एक दिन अचानक आवाज आई कि अपना गुरु बदल दो। तभी से मैं समर्पण ध्यान से जुड़ा और आपको गुरु मान लिया। यह क्या चमत्कार है? इस पर बाबा स्वामी ने कहा कि मंदिर में लोगों को धक्के मिलते हैं, लेकिन फिर भी लोग जाते हैं क्योंकि मंदिर में रखी प्रतिमा मैं आध्यात्मिक ऊर्जा होती है। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उस ऊर्जा को कैसे प्राप्त करें।
(एस.पी.मित्तल) (23-11-16)
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