लोकतंत्र की आड़ में घातक राजनीति कर रही हैं ममता बनर्जी।==

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2 दिसम्बर को लोकसभा में केन्द्रीय रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने स्पष्ट कहा है कि पश्चिम बंगाल में सेना का रुटीन अभ्यास स्थानीय पुलिस की सहमति से हुआ है। पहले यह अभ्यास 28 से 30 नवम्बर के बीच होना था, लेकिन कोलकाता की पुलिस ने आग्रह किया कि भारत बंद और अन्य कारणों की वजह से अभ्यास को 1 दिसम्बर से किया जाए। सेना ऐसे अभ्यास संबंधित राज्यों की पुलिस की सहमति से करती रहती है। विगत दिनों भी यूपी और अन्य राज्यों मे ंऐसे अभ्यास हुए हैं। रक्षामंत्री के इस कथन से साफ जाहिर है कि सैन्य अभ्यास के बारे में बंगाल पुलिस को जानकारी थी। अब यदि सीएम ममता बनर्जी सैन्य अभ्यास पर एतराज कर रही हैं तो यह देश के लिए घातक हो सकता है। माना कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य की है और ममता बनर्जी सीएम हैं, इसलिए उनकी जवाबदेही भी है। लेकिन कोई मुख्यमंत्री सेना को अपने रुटीन काम से कैसे रोक सकता है? जब कभी राज्य में कानून व्यवस्था फेल हो जाती है तो हमारे सुरक्षा बल ही नियंत्रित करते हैं। प्रतिवर्ष राज्यों में होने वाले सैन्य अभ्यास के पीछे भी सुरक्षा इंतजाम करना होता है। बंगाल में भी यातायात के ताजा हालात जानने के लिए टोल प्लाजा पर सैनिकों ने जांच पड़ताल की। ममता बनर्जी को सिर्फ राजनीतिक द्वेषता की वजह से सेना पर आरोप नहीं लगाने चाहिए।
ममता यह अच्छी तरह समझ लें कि जिस लोकतंत्र की आड़ में सेना को निशाना बनाया जा रहा है। उसी सेना की वजह से देश में लोकतंत्र कायम है और ममता बनर्जी कोलकाता से निकलकर दिल्ली, लखनऊ और पटना में रैली कर रही हैं। सेना पर आरोप लगाने से पहले ममता को कम से कम अपनी पुलिस से तो जानकारी कर लेनी चाहिए थी। आज हम राजनीति की वजह से ही कश्मीर के बिगड़े हालात देख रहे हैं। लाख कोशिश के बाद भी कश्मीर के हालात नियंत्रण में नहीं आ रहे। ममता बनर्जी को ऐसी राजनीतिक नहीं करनी चाहिए जो बंगाल को कश्मीर के रास्ते पर ले जाए। हो सकता है कि सेना का विरोध करने से ममता को बंगाल में राजनीतिक फायदा हो, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक होंगे। सेना का रुटीन अभ्यास भी देश की एकता और अखंडता से जुड़ा हुआ है। यह माना कि नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी की वजह से ममता बेहद खफा हैं, लेकिन इसका गुस्सा सेना पर नहीं उतारा जा सकता। ममता स्वयं जानती है कि उनकी रैली को लखनऊ में अखिलेश यादव और पटना में नीतिश कुमार का समर्थन नहीं मिला।
(एस.पी.मित्तल) (02-12-16)
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