तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का सीधा दखल नहीं। पहले सुनवाई के मद्दे तय होंगे। ====================
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14 फरवरी को चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर, जस्टिस एम.वी.रमण और जस्टिस धनंजय की पीठ ने इस बात के संकेत दिए हैं कि मुस्लिम समुदाय के तीन तलाक की परंपरा में सुप्रीम कोर्ट सीधा दखल नहीं देगा। पीठ ने इस मुद्दे पर विभिन्न पक्षों के वकीलों से कहा है कि वे एक साथ बैठकर वो बिन्दू बनाए, जिन पर सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई करनी है। पीठ ने कहा कि 16 फरवरी तक सुनवाई के बिन्दू मिल जाने चाहिए और 11 मई से इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू हो जाएगी। इस समय तीन तलाक का मुद्दा देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। यूपी चुनाव में तो यह मुद्दा रोजाना उछल रहा है। ऐसे माहौल में सुप्रीम कोर्ट की 14 फरवरी की राय अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। मालूम हो कि मुस्लिम महिलाओं की एक संस्था की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर तीन तला, निकाह हलाल जैसी प्रथाओं पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से जब जवाब मांगा तो सरकार ने भी तीन तलाक को गैर कानूनी बताते हुए, इसे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन माना। इसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस विवाद में पक्षकार बना और बोर्ड की ओर से यह कहा गया कि तीन तलाक शरियत कानून के दायरे में आता है, इसलिए यह किसी अदालत का मामला नहीं है। अनेक मुस्लिम संगठनों ने केन्द्र सरकार के हलफनामे का विरोध किया। सभी पक्षों के रुख को देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी को सूझबूझ वाली राय प्रकट की है। अब देखना है कि केन्द्र सरकार, याचिका प्रस्तुत करने वाली संस्था और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील आपस में मिलकर कौन से बिन्दू बनाते हैं। हालांकि बोर्ड के वकील पहले ही यह कह चुके हैं कि शरियत कानून में कोई अदालत दखल नहीं दे सकती है।
(एस.पी.मित्तल) (14-02-17)
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