गौ माता के मांस की पार्टियों पर अवार्ड लौटाने वाले चुप क्यों है? क्या अब नहीं हो रही असहिष्णुता?

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गौ माता के मांस की पार्टियों पर अवार्ड लौटाने वाले चुप क्यों है? क्या अब नहीं हो रही असहिष्णुता?
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केरल के कन्नुर में युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा सरेआम एक गाय को काट कर गौ माता के मांस की पार्टी करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि केरल में ही तिरूवंतपुरम में एस.एफ.आई. तथा तमिलनाडु के चेन्नई स्थित आई.आई.टी. के परिसर में ऐसी ही पार्टियों के फोटो व वीडियो सामने आ गए हैं। यानि केन्द्र सरकार ने पशुओं की खरीद-फरोख्त को लेकर जो नया कानून बनाया है, उसके विरोध में केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में खुले आम गौ माता के मांस की पार्टियां करवाई जा रही हंै। हो सकता है कि आने वाले दिनों में और स्थान पर भी ऐसी पार्टियां हों। सब जानते हैं कि सनातन संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। यही वजह है कि करोड़ों हिन्दुओं की धार्मिक भावना गाय से जुड़ी हुई है। यह माना की भारत में गाय का मांस न केवल खाया जाता है बल्कि निर्यात भी होता है। लेकिन यदि गौ माता की सरे आम हत्या कर मांस पार्टी की जाएगी तो क्या यह देश के करोड़ों लोगों की चिढ़ाने वाली बात नहीं है? दो वर्ष पहले देश में असहिष्णुता होने के विरोध में जो लोग अपने अवार्ड लौटा रहे थे, वे अब गौ माता के मांस की पार्टी पर चुप क्यों है? क्या सरेआम मांस पार्टी करना असहिष्णुता नहीं है? जब हम भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र मानते हैं तो फिर हिन्दुआं की धार्मिक भावना का ख्याल क्यों नहीं किया जाता? अनेक मामलों में धर्म की परम्पराओं को देश के संविधान और कानून से भी ऊपर माना जाता है, लेकिन जब एक निर्वाचित सरकार गौ हत्या कानून बनाती है तो उस कानून की सरेआम धज्जियां उड़ाई जाती है। समझ में नहीं आता कि इस देश के बुद्विजीवियों के दोहरे मापदण्ड क्यों है? ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुनियोजित षडय़न्त्र के तहत देश का माहौल बिगाडऩे की कोशिश की जा रही है।
(एस.पी.मित्तल) (29-05-17)
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