राजस्थान में अब नजर आने लगा है सत्ता से अलग भाजपा का संगठन। लगातार दो बैठकें सीएम के बगैर हो गईं।

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एक सितम्बर को जयपुर में राजस्थान भाजपा की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। लगातार यह दूसरा अवसर रहा जब प्रदेश भाजपा की बैठक में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उपस्थित नहीं रहीं। दोनों बैठकों में नवनियुक्त संगठन महासचिव चन्द्रशेखर की ही सक्रिय भूमिका रही। हालांकि दोनों बैठकों में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी भी उपस्थित रहे। लेकिन बैठक की कमान चन्द्रशेखर के पास ही रही। पिछले साढ़े तीन वर्षों में प्रदेश भाजपा की बैठक में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की उपस्थित को ही ज्यादा महत्व दिया गया। परनामी सहित भाजपा के अधिकांश पदाधिकारी यही चाहते थे कि बैठकों में सीएम राजे उपस्थित रहें। लेकिन एक सितम्बर और इससे पहले एक और हुई बैठक में संगठन महासचिव चन्द्रशेखर ने जो बातें कहीं उससे परनामी को भी यह अहसास हो गया कि अब भाजपा संगठन की पहचान सत्ता से अलग है। अब तक राजस्थान में सत्ता और संगठन का जो घालमेल हो रहा था, वह अब नहीं चलेगा।
चन्द्रशेखर ने जताई नाराजगीः
एक सितम्बर की बैठक में भाजपा के अग्रिम मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष और चुनिंदा विस्तारक भी उपस्थित रहे। जानकार सूत्रों के अनुसार विस्तारकों की कार्य प्रणाली को लेकर चन्द्रशेखर ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि अगले वर्ष नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बूथ प्रबंधन को मजबूत करना जरूरी है। इस मामले में बूथ स्तर के विस्तारक की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष परनामी से भी आग्रह किया कि निष्क्रिय विस्तारकों को हटाकर नए ऊर्जावान विस्तारकों की नियुक्ति की जाए।
विधायकों की गोद में है जिला संगठनः
इसमें कोई दो राय नहीं कि संगठन महासचिव चन्द्रशेखर प्रदेश में भाजपा को मजबूत करने के लिए निर्णय ले रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि भाजपा के जिला और मंडल स्तर के संगठन क्षेत्रीय विधायकों की गोद में हंै। जिस प्रकार प्रदेश स्तर पर सत्ता और संगठन एक दूसरे के पूरक हैं। इसी प्रकार जिला और मंडल अध्यक्ष वो ही काम करते हैं जो भाजपा के क्षेेत्रीय विधायक चाहते हैं। विधायकों की सिफारिशों से ही जिला और मंडल संगठन के पदाधिकारी बने हुए हैं। संगठन महासचिव चन्द्रशेखर को जिला और मंडल स्तर पर भी भाजपा को सत्ता से अलग पहचान बनवानी होगी। अभी जिला स्तर पर उसी कार्यकर्ता का महत्व है जो विधायक की सिफारिश से बना है, भले ही इससे संगठन कमजोर हो। हालात इतने खराब हंै कि जिला अध्यक्षों ने विधायकों की सिफारिश पर ही विस्तारकों के नाम जिला प्रदेश संगठन को भेजे हैं। चूंकि 200 में से 162 भाजपा विधायक हैं, इसलिए अधिकांश जिला संगठनों पर विधायकों का ही कब्जा है।
एस.पी.मित्तल) (01-09-17)
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