मास्टर प्लान के बगैर अजमेर कैसे बन रहा है स्मार्ट सिटी?

मास्टर प्लान के बगैर अजमेर कैसे बन रहा है स्मार्ट सिटी?
जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने यूडीएच और एडीए को नोटिस जारी किए।
2033 तक के प्लान के लिए अभी भी मांगी जा रही है आपत्तियां।

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29 मई को राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नन्द्राजोग ने राज्य सरकार के स्वायत्त शासन विभाग के सचिव और अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त को नोटिस जारी कर जानना चाहा है कि मास्टर प्लान के बगैर अजमेर को स्मार्ट सिटी कैसे बनाया जा रहा है? असल में पीलीखान निवासी विक्रम सिंह ने अपने वकील दिलीप शर्मा के जरिए एक जनहित याचिका दायर की। इस याचिका में कहा गया कि सरकार ने अभी तक अजमेर का मास्टर प्लान हीं मंजूर नहीं किया है तो फिर अजमेर में करोड़ों रुपए के कार्य कैसे करवाए जा रहे हैं। क्या ऐसे सभी कार्य मास्टर प्लान के विपरीत हैं? न्यायालय को बताया गया कि अजमेर विकास प्राधिकरण ने 2013 से 2033 तक का अजमेर का मास्टर प्लान तैयार करवाया है, इस पर पहले 2013 में आपत्तियां मांगी गई और अब 5 वर्ष बाद 2018 में आपत्तियां मांगी गई हैं। यानि जो मास्टर प्लान 2033 तक का है उस पर पिछले पांच वर्षों से आपत्तियां ही मांगने का कार्य हो रहा है। ऐसे मास्टर प्लान कब लागू होगा, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। चूंकि 2013 वाला मास्टर प्लान अभी तक मंजूर नहीं हुआ है तो ऐसे में पूर्व का ही मास्टर प्लान प्रभावी है। याचिका में राजस्थान पत्रिका के सम्पादक गुलाब कोठारी की लेख वाली याचिका का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें नदी, नालों, झीलों आदि के भराव क्षेत्र में निर्माण कार्यों पर रोक लगाई गई है, लेकिन इसके बाद भी आनासागर के चारों तरपफ पाथ वे का निर्माण तथा भराव क्षेत्र में धड़ल्ले से पक्के निर्माण हो रहे हैं। इस समय अजमेर में स्मार्ट सिटी योजना में ही नहीं, बल्कि हेरीटेज सिटी, हृदय योजना, प्रसाद योजना आदि में करोड़ों रुपए केन्द्र सरकार से प्राप्त हुए हैं। प्रशासन के अधिकारी अपनी मर्जी और मास्टर प्लान के विपरीत कार्य करवा रहे हैं। आनासागर वाले कार्यों तो गुलाब कोठारी वाले प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना में आते हैं। याचिका में ऐसे सभी कार्यों को रुकवाने और मास्टर प्लान को जल्द मंजूर करवाने की मांग की गई है। इस याचिका पर अब ग्रीष्म अवकाश के बाद जुलाई माह में सुनवाई होने की उम्मीद है।
तो खुल जाएगी पोलः
माना जा रहा है कि इस जनहित याचिका से सत्तारूढ़ नेताओं और अधिकारियों के गठजोड़ की पोल खुल जाएगी? यही गठजोड़ आम लोगों के कार्य मास्टर प्लान मंजूर नहीं होने का बहाना कर टाल रहा है, जबकि स्मार्ट सिटी, हेरीटेज सिटी आदि योजनाओं में करोड़ों रुपए के कार्य करवाए जा रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या मास्टर प्लान के नियम स्मार्ट सिटी के कार्यों पर लागू नहीं होते? सैकड़ों लोगों के भूमि नियमन के कार्य एडीए में अटके पड़े हैं। मलाई चाटने के लिए नेताओं और अफसरों का गठजोड़ स्मार्ट सिटी वाले कार्य तो करवा रहा है, लेकिन आम लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। आवासीय नक्शों पर धड़ल्ले से व्यावसायिक निर्माण हो रहे हैं। अब तो भाजपा नेताओं के पुत्र भी सिविल इंजीनियर बन कर मैदान में कूद पड़े हैं।

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