तो अजमेर में स्थानीय संस्थाएं भ्रष्टाचार में डूबी हैं।

तो अजमेर में स्थानीय संस्थाएं भ्रष्टाचार में डूबी हैं।
सत्तारूढ़ भाजपा भी कठघरे में।

 

जिन लोगों का नगर पालिका, नगर परिषद, नगर निगम, विकास प्राधिकरण जैसी स्थानीय निकाय संस्थाओं में काम पड़ता है, उनका अनुभव है कि रिश्वत दिए बिना काम नहीं होता। हालात इतने खराब है कि मकान बेचने के लिए एनओसी लेने जैसे मामूली कार्य के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है। यानि काम छोटा हो या बड़ा, रिश्वत के बिना नहीं होता। गंभीर बात तो ये है कि शिकायत करने पर किसी भी स्तर पर कोई सुनवाई नहीं होती। स्थानीय निकाय संस्थाओं को लोकतंत्र की पहली सीढ़ी माना जाता है, लेकिन लोकतंत्र की यह पहली सीढ़ी ही भ्रष्टाचार में डूबी है। जिन पार्षदों का दायित्व अपने वार्ड के नागरिकों की सेवा करना है वो ही पार्षद लुटेरे बने हुए हैं। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 8 अगस्त को बड़ी कार्यवाही करते हुए अजमेर जिले के ब्यावर नगर परिषद की सभापति बबीता च ौहान, उनके पति नरेन्द्र च ौहान और जीजा शिव प्रसाद को सवा दो लाख रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया। एसीबी की अदालत तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दे ही रही थी कि अजमेर नगर निगम के जेईएन राजेश मीणा और पार्षद राजेन्द्र पंवार के भ्रष्टाचार का मामला एसीबी ने उजागर कर दिया। भ्रष्टाचारियों की हिम्मत का अंदाजा इसी से लगता है कि जेईएन राजेश मीणा ने कोटड़ा क्षेत्र के जिस स्थान पर 25 हजार रुपए की रिश्वत लेने की हिमाकत की उसी स्थान से कुछ दूरी पर ही नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का आवास है। यानि जेईएन को अपने मेयर के आवास का भी डर नहीं रहा। एसीबी की प्राथमिक जांच में यह भी पता चला है कि मीणा पांच वर्ष पहले ही जेईएन बने हैं और इस समय अजमेर के महाराणा प्रताप नगर में एक करोड़ रुपए का मकान बनवा रहे हैं। इसी प्रकार पार्षद राजेन्द्र पंवार को स्वच्छ छवि का माना जाता था, क्योंकि पार्षद बनने से पहले पंवार पुष्कर रोड स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक द्वारा संचालित स्कूल विद्या निकेतन में प्राचार्य के पद पर कार्यरत थे। गत चुनावों में पंवार का वार्ड नम्बर चार से उम्मीदवार नहीं बनाया तो भाजपा के बागी उम्मीदवार के तौर पर ही चुनाव लड़ा। निर्दलीय पार्षद बनने के बाद पंवार ने हमेशा भाजपा का समर्थन किया। सवाल उठता है कि जब निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही भ्रष्टाचार में डूबे हैं तब स्थानीय निगम संस्थाओं का क्या होगा? गंभीर बात यह भी है कि अधिकांश निकाय संस्थाओं पर भाजपा का कब्जा है। भाजपा विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही, लेकिन अब जब सत्ता में आने का अवसर मिला तो भाजपा के जनप्रतिनिधि भी वो ही कर रहे हैं जो कांग्रेस के करते थे। जानकारों की माने तो अधिकांश जनप्रतिनिधि सेवा करने के बजाए गलियों में इधर-उधर घुम कर निर्माण कार्यों का पता लगाने में लगे रहते हैं। जो अवैध निर्माणकर्ता पार्षद और संबंधित जेईएन आदि को संतुष्ट कर देता है उस पर कोई कार्यवाही नहीं होती, लेकिन जो संतुष्ट नहीं करता है उसके निर्माण को सीज करवा दिया जाता है। इस समय शहरभर में धड़ल्ले से अवैध निर्माण को रहे हैं। आवासीय नक्शे की आड़ में कॉमशियल कॉम्प्लेक्स खुले आम बन रहे हैं। लेकिन ऐसे अवैध निर्माणों पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही। भाजपा के नेता माने या नहीं इन सब गतिविधियों से संगठन की छवि बेहद खराब हो रही है।

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...