मोदी जी आॅन लाइन दवा बिक्री को मान्यता मिली तो 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे।

मोदी जी आॅन लाइन दवा बिक्री को मान्यता मिली तो 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे। कार्यवाही तो लुटेरे प्राइवेट अस्पतालों पर होनी चाहिए। 28 सितम्बर को देशभर के मेडिकल स्टोर बंद रहेंगे।
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नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार यदि आॅन लाइन दवा बिक्री के काम को मान्यता देती है तो देश के 50 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे। दवाओं की आॅन लाइन बिक्री को रोकने के लिए देशभर के 8 लाख केमिस्ट 28 सितम्बर को अपने मेडिकल स्टोर बंद रखेंगे। केमिस्टों का कहना है कि एक मेडिकल स्टोर से चार पांच परिवारों का पोषण होता है। ऐसे में 50 लाख परिवारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा। अभी जब बिना मान्यता के ही आॅन लाइन दवा इतनी अधिक मात्रा में बिक रही है तब मान्यता मिल जाने पर मेडिकल स्टोर बंद हो जाएंगे। एक ओर नरेन्द्र मोदी स्किल इंडिया में युवाओं को रोजगार दिलवाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर 50 लाख लोगों को बेरोजगार किया जा रहा है। केमिस्टों के मेडिकल स्टोर पर ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट लागू होता है, जबकि वर्तमान में बिना नियमों के अवैध तरीके से दवाओं की आॅन लाइन बिक्री हो रही है। डाॅक्टर की पर्ची के बिना केमिस्ट कोई दवा नहीं दे सकता है, जबकि आॅन लाइन दवा बेचने वाली कम्पनियां नशीली दवाएं भी धड़ल्ले से बेच रही है। ऐसा लगता है कि देश में कोई कानून ही नहीं है। दवा निर्माता देशी विदेशी कंपनियां केमिस्टों को अधिकतम 30 प्रतिशत तक कमीशन देती है। इसी कमीशन की राशि में से मेडिकल स्टोर की दुकान का किराया, कर्मचारियों का वेतन, बिजली पानी आदि के बिलों का भुगतान करना होता है। लेकिन अब दवा कंपनियां आॅन लाइन बिक्री पर उपभोक्ता को सीधे 25 प्रतिशत तक डिस्काउंडट दे रही हैं। ऐसे में मेडिकल स्टोर तो बंद ही हो जाएंगे। ऐसी अनेक दवाएं होती हैं, जिन्हें फ्रीज में रखा जाना जरूरी होता है। मेडिकल स्टोर पर यह सुविधा भी होती है। अजमेर जिला केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेन्द्र कुमार मुरजानी और सचिव मदनगोपाल बाहेती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आग्रह किया है कि मान्यता नहीं दी जाए। इस संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 9928364787 पर मदन बाहेती से ली जा सकती है।
असली लूट तो प्राइवेट अस्पतालों में होती हैः
मोदी सरकार को यह समझना चाहिए कि दवाओं की बिक्री के नाम पर असली लूट तो देश के अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों में होती है। भर्ती मरीज के लिए दवाओं की खरीद अस्पताल के मेडिकल स्टोर से ही करना जरूरी होता है। यदि मरीज का रिश्तेदार अस्पताल के बाहर के मेडिकल स्टोर से दवा खरीद लेता है तो अस्पताल के डाॅक्टर उपयोग में नहीं लेते हैं। ईमानदारी दिखाने के लिए अस्पताल में एमआरपी पर दवाओं की बिक्री की जाती है, जबकि दवा कंपनियों से अस्पताल के लुटेेरे 50 प्रतिशत तक कमीशन वसूलते हैं। कई चोर और बेईमान दवा कंपनियां तो पहले ही एमआरपी ज्यादा लिखते हैं। मोदी सरकार को कार्यवाही करनी ही है तो प्राइवेट अस्पतालों में दवाओं की अनिवार्य खरीद को बंद करवा कर करनी चाहिए। बाजारों के मेडिकल स्टोर तो आपसी प्रतिस्पर्धा की वजह से अपने स्थायी ग्राहकों को सस्ती दर पर दवा देते हैं। सरकार को आॅन लाइन दवा बिक्री की अपनी नीति पर फिर से विचार करना चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (26-09-18)
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