नसीराबाद में अब भाजपा में स्थानीय उम्मीदवार की मांग जोर पकड़ने लगी है। इस मुद्दे पर पांच दिग्गज एकजुट। कांग्रेस एक ही परिवार तक सीमित।
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अजमेर जिले के नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवारों को लेकर रोचक स्थिति हो गई है। माना तो यही जा रहा था कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लाम्बा ही सबसे मजबूत दावेदार हैं। लेकिन भाजपा के दिग्गज नेताओं ने स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा खड़ा कर दिया है। इस मुद्दे को लेकर पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाड़िया (पीसांगन), भाजपा के प ूर्व जिलाध्यक्ष शिवराज च ौधरी (मकरेड़ा), युवा मोर्चे के महामंत्री गोपाल गुर्जर (ब्रिकचियावास), पीसांगन पंचायत समिति के पूर्व प्रधान दिलीप पचार, पीसांगन पंचायत समिति के सरपंच संघ के अध्यक्ष शक्ति सिंह रावत केसरपुरा, नसीराबाद नगर पालिका के अध्यक्ष योगेश सोनी आदि शामिल हैं। भाजपा के इन दिग्गज नेताओं का कहना है कि उम्मीदवार किसी को भी बनाया जाए, लेकिन स्थानीय होना चाहिए। नसीराबाद का आम मतदाता भी यह चाहता है कि नसीराबाद क्षेत्र के निवासी को ही उम्मीदवार बनाया जाए। अब देखना होगा कि स्थानीय उम्मीदवार का दम आने वाले दिनों में किना होगा, क्योंकि पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय सांवरलाल जाट के पुत्र लाम्बा ने भी पूरी ताकत लगा रखी है। लाम्बा भले ही नसीराबाद क्षेत्र के निवासी न हो, लेकिन स्वर्गीय जाट ने गत बार नसीराबाद से ही विधानसभा चुनाव 29 हजार से जीता था। यह बात अलग है कि अगले वर्ष जाट ने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो नसीराबाद से 10 हजार मतों से ही बढ़त मिल पाई। विधानसभा के उपचुनाव में तो सरिता गैना को 386 मतों से हार का सामना करना पड़ा। जाट के निधन के बाद इसी वर्ष जनवरी में लोकसभा उपचुनाव हुए तो रामस्वरूप लाम्बा भी नसीराबाद से डेढ़ हजार मतों से पीछे रहे।
अपने अपने तर्कः
हालांकि भाजपा के दिग्गज दावेदार स्थानीय उम्मीदवार की मुहिम में एकजुट हैं, लेकिन अपनी उम्मीदवारी के लिए अपने अपने तर्क दे रहे हैं। पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाड़िया स्वयं को वरिष्ठ नेता मानते हुए दावेदारी जता रहे हैं। पहाड़िया का सम्पर्क विधानसभा क्षेत्र में निरंतर बना हुआ है। वहीं पालिका अध्यक्ष योगेश सोनी का कहना है कि नसीराबाद में नगर पालिका के गठन में उनकी सक्रिय भूमिका रही तथा कई करोड़ रुपए के विकास का र्य कर वाए। जबकि पूर्व में छावनी बोर्ड की वजह से नसीराबाद में विकास अवरुद्ध था। गोपाल गुर्जर का सबसे बड़ा तर्क यह है कि आजादी के बाद नसीराबाद से गुर्जर समुदाय के व्यक्ति को भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बनाया, जबकि आमतौर पर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गुर्जर ही विधायक बनते रहे। शक्ति सिंह रावत का कहना है कि वर्ष 2008 में जब निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, तब 7 हजार मत लिए थे। शिवराज च ौधरी भी पार्टी के प्रति अपने समर्पण को लेकर दावेदारी जता रहे हैं। दावेदारी जताने में पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना भाजपा के ओबीसी मोर्चे के प्रदेशाध्यक्ष ओम प्रकाश भडाना, श्रीनगर मंडल के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान में एकल विद्यालय के जिला संयोजक सुभाष काबरा भी पीछे नहीं हैं। वहीं रामस्वरूप लाम्बा के समर्थकों का कहना है कि उनका गोपालपुरा गांव नसीराबाद के निकट ही है। यानि उनके पिता स्वर्गीय सांवरलाल जाट ने ही वर्ष 2013 में कांग्रेस के इस गढ़ को ध्वस्त कर दिया था। इसलिए पहला हक उन्हीं का है। आज भी नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में उनके पिता के प्रति सहानुभूति है। वर्ष 2008 में मेरे पिता नसीराबाद से मात्र 71 वोटांे से पराजित हुए थे, स्वर्गीय जाट को सभी जातियों का समर्थन मिला।
कांग्रेस परिवार तक सीमितः
सब जानते हैं कि स्वर्गीय गोविंद सिंह गुर्जर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर छह बार विधायक बने। वर्तमान में भी उन्हीं के परिवार से जुड़े रामनारायण गुर्जर कांग्रेस विधायक है, इससे पहले स्वर्गीय गुर्जर के भतीजे महेन्द्र सिंह गुर्जर भी निर्वाचित हुए हैं। चूंकि रामनारायण गुर्जर ने भाजपा के शासन में उपचुनाव जीता इसलिए माना जा रहा है कि गुर्जर ही कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे, वैसे महेन्द्र सिंह गुर्जर गुरुदयाल सिंह गुर्जर नौरत गुर्जर आदि भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। एक परिवार के व्यक्तियों का 8 बार चुनाव जितना यह दर्शाता है कि कांग्रेस की स्थिति कितनी मजबूत है।
आंकड़ों का गणितः
नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में दो लाख 13 हजार मतदाता है, इनमें से 40 हजार गुर्जर, 30 हजार जाट, 25 हजार रावत, 45 हजार एससी 30 हजार, मुसलमान 10 हजार राजपूत मतदाता माने जा रहे हैं। देखना होगा कि आंकड़ों की गणित के हिसाब से भाजपा किसके गले में चुनाव की माला डालती है। वैसे भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों के लिए नसीराबाद की सीट आसान नहीं है। कांग्रेस भले ही लगातार जीत दर्ज करवाती आ रही है। लेकिन जीत का अंतर बहुत कम रहा है। स्वर्गीय गोविंद सिंह गुर्जर भी मामूली अंतर से ही चुनाव जीतते रहे। रामनारायण गुर्जर की उपचुनाव में 386 मतों से जीत बताती है कि कांग्रेस मजबूत स्थिति में नहीं है। यदि भाजपा के नेताओं में एकता बनी रही तो कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकती है।