तो राजस्थान में भाजपा कहां गई?
टिकिट कटने वाले विधायकों के क्षेत्रों में बगावत।
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राजस्थान में 7 दिसम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव में 131 उम्मीदवारों की घोषणा भाजपा ने 11 नवम्बर की रात को कर दी। 12 नवम्बर को देश के सबसे बड़े अखबार भास्कर ने टिकिट वितरण की खराब पर शीर्षक लगाया आरएसएस और राजे को बराबर टिकिट। इसी प्रकार राजस्थान पत्रिका का शीर्षक था भाजपा की पहली सूची में राजे और संघ का राज। अखबारों की खबरों में यही कहा गया कि टिकिट वितरण राष्ट्रीय स्वयं सेवक और सीएम वसुंधरा राजे की चली है। राष्ट्रीय नेतृत्व ने जहां संघ को प्राथमिकता दी, वहीं वर्तमान विधायकों को फिर से उम्मीदवार बना कर सीएम राजे को भी संतुष्ट किया। सवाल उठता है कि ऐसे में मदनलाल सैनी की अध्यक्षता वाली भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में कहां चली गई? क्या भाजपा संगठन के प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं और नेताओं की पैरवी करने वाला कोई नहीं है? यदि सीएम राजे और संघ के प्रति वफादारी दिखाने वालों को ही टिकिट मिलेगा तो फिर भाजपा संगठन के लिए कौन काम करेगा? यह सही है कि सीएम वसुंधरा राजे अपने वफादार विधायकों को दोबारा से उम्मीदवार बनवाने में सफल रही है, जिन्होंने ने पूरे पांच वर्ष वफादारी दिखाई। सीएम राजे अब यह कह सकती है कि जो विधायक उनके प्रति वफादार रहा है उसके हितों का ध्यान रखा गया है। सब जानते है कि अशोक परनामी के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा संगठन वो ही हुआ जो सीएम राजे और विधायकों ने चाहा। पहले परनामी के जरिए अपने जिला अध्यक्ष बनवाए गए और फिर इन जिला अध्यक्षों ने वो ही किया जो विधायकों ने कहा। यानि राजस्थान में भाजपा का संगठन सत्ता की गोदी में बैठा रहा। अब जब टिकिट वितरण का मौका आया तो भाजपा संगठन नदाराद हो गया, जहां तक संघ का सवाल है तो संघ की ताकत को चुनौती देने की हिम्मत वसुंधरा राजे में भी नहीं है। 200 में से 163 विधायकों का समर्थन होने के बाद भी राजे को समय समय पर संघ की शरण में जाना पड़ा है। राजे को भी पता है कि चुनाव में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए संघ की ओर से जिन दावेदारों के नाम प्रस्तावित किए गए उन्हें भी उम्मीदवार घोषित किया गया। हालांकि संघ की पृष्ठ भूमि वाले भाजपा नेता संगठन के प्रति भी समर्पित होते है। लेकिन टिकिट वितरण में जिस तरह सीएम राजे अपने विधायकों के लिए पार्टी बनी उससे प्रतीत होता कि परिणाम के बाद जो हालात उत्पन्न होंगे उसमें भी सीएम राजे कोई चूक नहीं करना चाहती है। हालांकि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से पहले ही कहा जा चुका है कि बहुमत मिलने पर वसुंधरा राजे ही सीएम बनेगी। लेकिन राजनीतिक में ऐसे वायदे अक्सर टलते देखे गए हैं। इसलिए वसुंधरा राजे टिकिट वितरण में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। हालांकि अभी सत्तर सीटों पर और घोषणा होनी है। लेकिन माना जा रहा है कि इन सीटों के उम्मीदवारों का फैसला भी राजे और संघ के बीच ही होगा।
टिकिट कटने वाले क्षेत्रों में विरोधः
12 नवम्बर को उन विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को विरोध की स्थिति का सामना करना पड़ा जहां विधायकों के टिकिट काटे गए हैं। असल में संगठन के पदाधिकारी विधायक की सिफारिश से ही बने हैं। इसलिए अब अपने विधायक टिकिट कटने पर पूरा संगठन समर्थन में खड़ा है, इसका मजबूत उदाहरण किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा में खुली बगावत है। मनोनीत पार्षद तक इस्तीफा दे रहे हैं। यही स्थिति प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों में भी है। अब देखना होगा कि भाजपा में हो रही इस बगावत से कैसे निपटा जाता है।