राजस्थान में वसुंधरा राजे के दरबारी अब हार का ठीकरा अमितशाह के सिर फोड़ने में लगे।

राजस्थान में वसुंधरा राजे के दरबारी अब हार का ठीकरा अमितशाह के सिर फोड़ने में लगे। पर अपनी विफलताओं पर पर्दा नहीं डाल सकती सीएम।
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सट्टा बाजार और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया के चुनावी सर्वे के बाद 10 दिसम्बर को देश के सबसे बड़े अखबार दैनिक भास्कर का सर्वे भी सामने आ गया। भास्कर ने जहां कांग्रेस को 77 तथा भाजपा को मात्र 42 सीटे दी हैं। वहीं 67 सीटों पर संघर्ष की बात कह कर अपनी इज्जत बचाने की कोशिश की है। हालांकि मतगणना 11 दिसम्बर को होगी, लेकिन सट्टा बाजार से लेकर भास्कर अखबार तक सर्वे बताने में पीछे नहीं है। यह बात अलग है कि फेक न्यूज को लेकर अक्सर सोशल मीडिया की आलोचना होतीे है। अभी तक के सभी सर्वो में राजस्थान में भाजपा को हारा हुआ बताया जा रहा है। सबको पता है कि इस बार की पूरी जिम्मेदारी सीएम वसुंधरा राजे की है, लेकिन वसुंधरा के दरबारी अब हार का ठीकरा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह के सिर पर फोड़ने में लग गए हैं। 10 दिसम्बर को कुछ न्यूज चैनलों के सम्पादकों का कहना रहा कि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने मुस्लिम उम्मीदवार न बना कर वसुंधरा राजे की छवि को बिगाड़ा। मालूम हो कि इस बार टोंक को छोड़कर किसी भी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं बनाया। दरबारियांे का कहना रहा कि वसुंधरा राजे की छवि मुस्लिम विरोधी नहीं थी, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने बना दी। जिसका खामियाजा चुनाव में उठाना पड़ रहा है। वसुंधरा के पांच वर्ष के शासन में जिन दरबारियांे ने माल खाकर अपनी मूंछों पर देशी घी लगाया, उनके तर्क है कि हार की जिम्मेदारी अकेले वसुंधरा राजे की नहीं है। दरबारियों को भी पता है कि 11 दिसम्बर के बाद क्या होगा? इसलिए अभी से बचाव में लग गए हैं, जबकि सब जानते हैं कि वसुंधरा राजे ने अपनी ताकत दिखाने में अमितशाह को भी नहीं बख्शा। प्रदेशाध्यक्ष का मामला 6 माह तक सिर्फ वसुंधरा राजे की जिद के आगे लटका रहा। इसे राष्ट्रीय नेतृत्व की मजबूरी ही कहा जाएगा कि सीएम के चेहरे के तौर पर वसुंधरा राजे के नाम की घोषणा करनी पड़ी। पहले तो एक तरफा शासन और फिर चुनाव में सीएम का चेहरा। फिर भी दरबारी कह रहे हैं कि हार के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व जिम्मेदार है। सब जानते है कि टिकिट वितरण में भी सीएम की एक तरफा चली है। टिकिट उसी विधायक का कटा, जिसका सीएम ने चाह। अजमेर जिले में केकड़ी से शत्रुघ्न गौतम और किशनगढ़ से भागीरथ च ौधरी इसके सबसे बढ़िया उदाहरण हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व ने भले ही अशोक परनामी को प्रदेशाध्यक्ष के पद से हटा दिया हो, लेकिन सीएम ने परनामी को ही प्रदेशाध्यक्ष माना। यह सीएम की जिद ही रही कि लोकसभा उपचुनाव में नाराज लोगों से विधानसभा चुनाव से पूर्व कोई संवाद नहीं किया। यदि सीएम राजे अपने विरोधियों के प्रति नरम रुख रखती तो चुनाव में ऐसी दशा नहीं होती। दरबारी चाहे कितना भी राग अलाप लें लेकिन वे सीएम को उनकी जिम्मेदारी से बचा नहीं सकते हैं। यह बात अलग है कि ऐसे दरबारियों के काले कारनामे भी अब उजागर होंगे।
एस.पी.मित्तल) (10-12-18)
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