पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की ढिलाई की वजह से निर्दलीय विधायकों ने दिया कांगे्रस को समर्थन।

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की ढिलाई की वजह से निर्दलीय विधायकों ने दिया कांगे्रस को समर्थन।
राजे का यह रुख लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी पड़ेगा। घनश्याम तिवाड़ी भी कांगे्रस में गए।
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राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भाजपा की उन नेताओं में से हैं जो अपनी शर्तों पर राजनीति करती हैं। सीएम बनेंगी तो अपनी मर्जी का प्रदेशाध्यक्ष भी चाहिए। यदि अशोक परनामी जैसे को अध्यक्ष पद से हटा दिया तो फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार भी होगी। हार के बाद भी वसुंधरा राजे चाहती हैं कि लोकसभा चुनाव में उन्हीं के मर्जीदानों को उम्मीदवार बनाया जाए। लेकिन इतनी दादागिरी के लिए स्वयं कोई योगदान नहीं करना चाहतीं। विधानसभा चुनाव में 13 उम्मीदवार निर्दलीय तौर पर जीते हैं। 26 मार्च को ये सभी 13 निर्दलीय विधायक कांगे्रस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा कर रहे हैं। निर्दलीय विधायकों की घोषणा से अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार को तो मजबूती मिलेगी ही, साथ ही लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को फायदा होगा। सवाल उठता है कि जिस राज्य में वसुंधरा राजे जैसी दमखम वाली भाजपा नेता हों, उस राज्य में एक भी निर्दलीय भाजपा के साथ न आए, ऐसा कैसे हो सकता है? जाहिर है कि जिस पार्टी में वसुंधरा राजे ने केन्द्रीय मंत्री और दस वर्षों तक मुख्यमंत्री का सुख भोगा, उन्होंने इस मुद्दे पर कोई प्रयास नहीं किया। क्या किसी निर्दलीय विधायक से वसुंधरा राजे ने पार्टी हित में संवाद किया? जो लोग वसुंधरा राजे की राजनीति को जानते हैं उनका दावा है कि वसुंधरा चाहतीं तो इतने निर्दलीय विधायक कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा नहीं करते। वसुंधरा राजे जब सीएम थीं, तब राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय विधायकों के वोट भाजपा उम्मीदवार को दिलवाए; 2013 के चुनाव में भाजपा के 162 विधायक चुने गए। पांच वर्ष तक वसुंधरा राजे ने अपनी मनमर्जी से राज किया; 2018 के चुनाव में भी सभी 200 उम्मीदवार स्वयं ने तय किए, लेकिन राजे सिर्फ 73 विधायक ही चुनवा पाईं। यानि 2013 के मुकाबले भाजपा के आधे विधायक रह गए। वसुंधरा राजे को अपनी इस स्थिति को भी ध्यान रखना चाहिए। सत्ता का सुख भोगते हुए ही वफादारी दिखाई जाए, ऐसा नहीं होना चाहिए। असली कार्यकर्ता तो वो ही होतो है जो सत्ता से बाहर रह कर पार्टी के लिए समर्पण भाव से कार्य करें। सभी निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांगे्रस को  चले जाने की जवाबदेही भी अकेले वसुंधरा राजे की है। भाजपा आलाकमान को राजे के बारे में ठोस निर्णय लेना चाहिए। यदि ऐसा ही ढुलमुल रवैया चलता रहा तो भाजपा को लोकसभा चुनाव में नुकसान होगा। अभी राजस्थान में भाजपा की कमान किसी एक नेता के पास नहीं है। चुनाव के प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर कोई प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। जावड़ेकर वसुंधरा राजे को भी नाराज नहीं करना चाहते। हालांकि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह चाहते हैं कि प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया को ताकत में लाया जााए। लेकिन निर्दलीय विधायकों जैसी घटनाएं करवा कर वसुंधरा राजे कटारिया को भी मजबूत होने से रोक रही हैं। मौजूदा समय में कटारिया ही भाजपा विधायक दल के नेता हैं, ऐसे एक भी निर्दलीय विधायक का समर्थन भाजपा को नहीं मिलना, कटारिया के नेतृत्व पर भी सवाल खड़ा करता है।
तिवाड़ी भी कांगे्रस में:
26 मार्च को राहुल गांधी के जयपुर आगमन पर भारत वाहिनी के प्रदेशाध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी भी कांग्रेस में शामिल हो गए। तिवाड़ी भाजपा में थे, लेकिन राजे के व्यवहार से क्षुब्ध होकर अपनी नई पार्टी  बनाई; हालांकि विधानसभा चुनाव में तिवाड़ी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए, लेकिन प्रदेश भाजपा में राजे का दखल बना रहने की वजह से तिवाड़ी को कांगे्रस में शामिल होना पड़ा। यानि राजे की वजह से भाजपा को लगातार नुकसान हो रहा है।
एस.पी.मित्तल) (26-03-19)
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