अजमेर नगर निगम में गिरोहबद्ध तरीके से हो रहे थे नक्शे पास। 

अजमेर नगर निगम में गिरोहबद्ध तरीके से हो रहे थे नक्शे पास। 
इंजीनियरों और उपायुक्त की चार्जशीट तैयार। 
मेयर गहलोत के प्रकरण में 12 को सुनवाई। 
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अब राज्य सरकार ने भी मान लिया है कि अजमेर नगर निगम में गिरोहबद्ध तरीके से नक्शें स्वीकृत किए जा रहे थे। जिन कनिष्ठ अभियन्ता और सहायक अभियंता का क्षेत्राधिकार नहीं था, उन्होंने गिरोह में शामिल होकर नक्शें की फाइल पर मौका रिपोर्ट दी और जिस दिन आयुक्त अवकाश पर रहे, उस दिन नियमों के विरुद्ध जाकर कार्यवाहक उपायुक्त गजेन्द्र सिंह रलावता से नक्शे स्वीकृत करवा लिए। यह गिरोह इतना तगड़ा था कि नौकरी की भी परवाह नहीं की। लालच में नौकरी भी दांव पर लगा दी गई। रलावता तो उपायुक्त भी नहीं थे, कार्यवाहक उपायुक्त के नाते आयुक्त के अधिकारों का इस्तेमाल कर लिया। व्यावसायिक नक्शों पर आयुक्त की मंजूरी अनिवार्य है, लेकिन गिरोह के सदस्यों ने कार्यवाहक उपायुक्त की मंजूरी के बाद आयुक्त की मंजूरी लेने की जरुरत नहीं समझी। असल में आयुक्त की मंजूरी ली जाती तो गिरोह का भंडाफोड़ हो जाता। सरकार ने गिरोहबद्ध तरीके से मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को भी शामिल माना है, क्योंकि  कार्यवाहक उपायुक्त रलावता से व्यावसायिक  नक्शे स्वीकृत करवाने पर मेयर ने ही सहमति दी थी। सरकार ने मेयर गहलोत को भी दोषी मानते हुए नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 में नोटिस भी जारी किया है। इस धारा में मेयर को निलंबित भी किया जा सकता है। हालांकि अभी मेयर को हाईकोर्ट  की शरण ली। हालांकि अभी मेयर को कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। अब इस मामले 12 अप्रैल को सुनवाई होनी है। लेकिन इस बीच स्वायत्त शासन विभाग ने उपायुक्त रलावता, सहायक अभियंता रमेश बाजड़ेलिया और मनमोहन माथुर को चार्जशीट देने की तैयारी कर ली है। बाजड़ेलिया इस समय भीलवाड़ा की आसींद नगर पालिका में नियुक्त है, लेकिन नक्शों की स्वीकृति के समय वे नगर निगम में कनिष्ठ अभियंता के पद पर नियुक्त थे। इन दोनों इंजीनियरों ने सारे नियम कायदे ताक में रख कर व्यावसायिक नक्शों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की। जो नक्शा सिर्फ भूतल पर व्यावसायिक स्वीकृत होना था उसे बेसमेंट के साथ चार मंजिला स्वीकृत कर दिया। चूंकि गिरोहबद्ध तरीके से कार्य हो रहा था, इसलिए जब आयुक्त हिमांशु गुप्ता (वर्तमान में बाड़मेर के कलेक्टर) आकस्मिक अवकाश पर गए तो कार्यवाहक उपायुक्त रलावता से मंजूरी ले ली गई। रलावता को भी पता था कि उन्हें व्यावसायिक नक्शों की मंजूरी का अधिकार नहीं है, लेकिन राजनीतिक संरक्षण होने की वजह से रलावता ने सरकार के नियमों की परवाह नहीं। जानकार सूत्रों के अनुसार निगम की आयुक्त सुश्री चिन्मयी गोपाल ने चार्जशीट का प्रारूप स्वायत्त शासन विभाग को भिजवा दिया है। सूत्रों की माने तो एक दो दिन में रलावता  और दोनों आरोपी इंजीनियरों को चार्जशीट थमा दी जाएगी।
इसलिए हुआ गिरोह का भंडाफोड़:
गिरोहबद्ध तरीके से निगम में नक्शे स्वीकृत होते रहे हैं, लेकिन गत वर्षों में जब तत्कालीन आयुक्त हिमांशु गुप्ता और मेयर गहलोत के बीच टकराव हुआ तो गुप्ता ने 13 नक्शों का चयन किया। गुप्ता की शिकायत पर राज्य सराकार ने जांच कमेटी बैठाई। इस कमेटी ने श्रीमती आशा देवी, नारायणदास, अनूप कुबेरा, अमराव कंवर, ललित गुप्ता, रमेश हेमनानी, मयंक खंडेलवाल, श्रीमती ईश्वरी देवी, श्रीमती पूनम, भगवान सिंह चौहान, ओम प्रकाश माहेश्वरी, नंदलाल बलाचंदानी तथा सुनील सेठी के स्वीकृत नक्शों को नियमों के विपरीत माना। यदि आयुक्त और मेयर में टकराव नहीं होता तो निगम में सक्रिय गिरोह आज भी नक्शों को स्वीकृत करवाता रहता है। बात तब और बिगड़ गई जब इन्हीं नक्शों की जांच को लेकर मेयर गहलोत ने कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा को नोटिस दे दिया। आयुक्त हिमांशु गुप्ता से जब विवाद हुआ तब प्रदेश में भाजपा का शासन था, लेकिन जब कलेक्टर को नोटिस दिया तब प्रदेश में कांग्रेस का शासन स्थापित हो गया। जाहिर था इस बार मेयर को नोटिस देना भारी पड़ गया। अब मेयर पर भी निलंबन की तलवार लटक गई है। इस बीच मौजूदा आयुक्त चिन्मयी गोपाल ने भी अवैध निर्माणों के विरुद्ध अभियान चला रखा है। निगम के गिरोह के संरक्षण में जो भवन निर्माता आवासीय भूखंड पर व्यावसायिक निर्माण कर रहे थे, उन्हें नोटिस दे दिए गए हैं। 10 अप्रैल से ऐसे अवैध निर्माणों को सीज करने की कार्यवाही भी शुरू हो गई है। 10 अप्रैल को वैशाली नगर में तरंग शोरूम और दीपिका बोथरा के भवनों को सीज कर दिया गया।
एस.पी.मित्तल) (10-04-19)
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