अकेले बजरी से एक रात में एक थाने की कमाई डेढ़ लाख रुपए। 

अकेले बजरी से एक रात में एक थाने की कमाई डेढ़ लाख रुपए। 
अंदाजा लगाया जा सकता है राजस्थान में पुलिस की नाजायज कमाई का।
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17 मई को तड़के एसीबी ने एक बड़ी कार्यवाही करते हुए राजस्थान के टोंक जिले के पीपलू थाने के कांस्टेबल कैलाश चौधरी को 6 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। अजमेर स्थित एसीबी के एसपी मृदुल कच्छावा ने बताया कि कांस्टेबल कैलाश जब एक बजरी से भरे ट्रक चालक से रिश्वत ले रहा था तभी उसे रंगे हाथों पकड़ा गया। कांस्टेबल के पास से एक लाख 46 हजार 500 रुपए की राशि भी बरामद की गई। इससे प्रतीत होता है कि पीपलू थाने की सीमा से गुजरने वाले बजरी से भरे वाहनों से रिवश्त वसूली जा रही थी। एसीबी ने कैलाश चौधरी के साथ दो अन्य पुलिस कर्मियों को भी पकड़ा है, जबकि थानाधिकारी वीरेन्द्र गिल फरार है।
असल में जब कांस्टेबल कैलाश को पकड़ लिया, तब एसीबी के अधिकारियों ने थानाधिकारी गिल से फोन पर बात करवाई। गिल ने कैलाश को निर्देश दिए कि अभी तक जो वसूली हुई है, वह थाने के क्वाटर पर आकर मुझे दे दो और फिर जल्दी से वापस मौके पर चले जाना। एसीबी की टीम जब कैलाश को लेकर थानाधिकारी के पास जा रही थी कि तभी किसी दलाल ने गिल को सूचना दे दी। एसीबी के आने से पहले गिल क्वार्टर छोड़ कर भाग गए। गिल अजमेर के क्रिश्चियनगंज पुलिस पर दो वर्ष तक नियुक्त रहे। तब भी थाने के क्वार्टर में ही रहते थे। असल में थानापरिसर के क्वार्टर में रहने पर अनेक कार्यों में सुविधा रहती है। गिल कुछ माह के लिए अजमेर के दरगाह थाने पर भी नियुक्त रहे थे।
चूंकि बनास नदी टोंक जिले में भी आती है, इसलिए बडे पौमाने पर बजरी का खनन होता है।  बजरी खनन की वजह से बनास नदी में बड़े बड़े खड्डे हो गए है जो खाई की तरह नजर आते हैं। एसीबी के बड़े अधिकारियों का मानना है कि टोंक जिले के कई थानों में पीपलू थाने की तरह वसूली होती है। एसीबी की पड़ताल अपनी जगह है, लेकिन राजस्थान पुलिस की अकेले बजरी से कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब एक रात में एक थाने की अकेले बजरी से डेढ़ लाख रुपए तक की कमाई है तो थानों की पुलिस के बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। आबादी के लिहाज से वैसे ही थानों पर पुलिस कर्मियों क ी संख्या बहुत कम है। जो पुलिस कर्मी नियुक्त है उनमें से अनेक वसूली का काम करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन पर जब से रोक लगाई है, तब पुलिस की मौज हो गई है। नदी से लेकर उपभोक्ता के घर तक जितने भी थाने रास्ते में आएंगे उन सभी में ट्रक-ट्रेक्टर आदि वाहनों के चालकों को रिश्वत देनी ही पड़ेगी। पुलिस महकमे में यह व्यवस्था सैट हो गई है। इसमें पुलिस की बदनामी भी नहीं होती है। रात आठ बजे बाद शराब की दुकाने खुलने, मुम्बई-इंदौर का सट्टा चलवाने, बाजारों में ठेले वालों से अस्थायी अतिक्रमण करवाने आदि में तो पुलिस को बदनामी का सामना करना पड़ता है। लेकिन बजरी की वसूली तो साफ सुथरा काम है। कैलाश चौधरी जैसे कांस्टेबल थाने पर तैनात होने वाले नाए थानाधिकारी आते ही जानकारी दे देते हैं। एक रात में एक आईटम से यदि डेढ़ लाख रुपए की कमाई हो रही है तो किस थानाधिकारी को बुरी लगेगी? इस समय राजस्थान में एसीबी की कमान अलोक त्रिपाठी जैसे ईमानदार अफसर के हाथे में है और आईजी के पद पर दिनेश एनएम जैसे दबंग अधिकारी नियुक्त है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब प्रदेशभर में बजरी माफिया के खिलाफ कार्यवाही होगी। इस मामले में राज्य सरकार को भी कोर्ट में गंभीरता के साथ पैरवी करनी चाहिए। ताकि बजरी खनन का कोई रास्ता निकल सके। कोर्ट ने तो नदियों को बचाने के लिए बजरी खनन पर रोक लगाई थी, लेकिन पुलिस ने कोर्ट की मंशा पर पानी फेर रखा है। जब बजरी खनन रुक ही नहीं रहता तो फिर रोक का क्या फायदा? बजरी माफिया पुलिस को जो रिश्वत देता है उसे बेकसूर उपभोक्ता से वसूला जाता है। जो बजरी का ट्रक पूर्व में दो हजार रुपए का आता था उसकी कीमत अब दस हजार रुपए तक चुकानी पड़ रही है।
एस.पी.मित्तल) (17-05-19)
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