कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेरते हुए हरियाणा में भाजपा ने निर्दलीय विधायकों के दम पर बहुमत जुटाया।

कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेरते हुए हरियाणा में भाजपा ने निर्दलीय विधायकों के दम पर बहुमत जुटाया। महाराष्ट्र में भी शिवसेना को पटाने के हर संभव प्रयास। 

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25 अक्टूबर को हरियाणा में भाजपा ने बहुमत जुटाने में सफलता प्राप्त कर ली है। भाजपा ने विवादित विधायक गोपाल कांडा के सहयोग से सात निर्दलीय विधायकों का समर्थन हांसिल कर लिया है। अब निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर राज्यपाल के समक्ष 47 विधायकों की सूची प्रस्तुत करने जा रहे हैं। भाजपा के पास अपने चालीस विधायक हैं। ऐसे में अब भाजपा के पास बहुमत से एक विधायक ज्यादा है। भाजपा ने जिस तरह निर्दलीयों के दम पर बहुमत जुटाया उससे हरियाणा में कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फिर गया है। 24 अक्टूबर को घोषित परिणाम में कांग्रेस को 31 सीटें, मिली तब कांग्रेस ने  दस सीटों पर वाली जेजेपी को सीएम पद का ऑफर देकर भाजपा को सत्ता से बाहर रखने की योजना बनाई। इधर कांग्रेस जेजेपी पर आंख लगाए बैठी रही, उधर भाजपा ने हरियाणा के इनेलो सहित सभी 9 निर्दलीय विधायकों को अपने खेमे में कर लिया। यही वजह रही कि 24 अक्टूबर की रात को दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह ने घोषणा कर दी कि हरियाणा में खट्टर के नेतृत्व में ही भाजपा की सरकार बनेगी। भाजपा की इस रणनीति से बौखलाए कांग्रेस के युवा नेता दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि जिन निर्दलीय विधायकों ने भाजपा को समर्थन दिया है उन्हें अब जनता जूते मारेगी। दीपेन्द्र हुड्डा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के पुत्र हैं। दीपेन्द्र हुड्डा की बौखलाहट से साफ जाहिर था कि अब कांग्रेस के हाथ से बाजी निकल चुकी है। हालांकि जिस तरीके से हरियाणा में बहुमत जुटाया गया है उससे भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती भी नाराज हैं। गोपाल कांडा के समर्थन के संबंध में उमा भारती का कहना रहा कि विधायक बन जाने से किसी व्यक्ति का अपराध कम नहीं हो जाता। इस संबंध में उमा ने भाजपा नेतृत्व से भी पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। हरियाणा में खट्टर सरकार की मजबूती के लिए निर्दलीय विधायकों को भाजपा की सदस्यता भी दिलवाई जा सकती है।
शिवसेना को पटाने के प्रयास भी :
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है। 288 में से 161 सीटें इसी गठबंधन को मिली है। भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली हैं। लेकिन अब शिवसेना का दबाव है कि 50-50 के फार्मूले पर अमल किया जावे। हालांकि इस मामले में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की कोई स्पष्ट राय सामने नहीं आई है। लेकिन माना जा रहा है कि शिवसेना ढाई-ढाई वर्ष के लिए सीएम पद चाहती है। इसी प्रकार मंत्रिमंडल में भी आधे मंत्री शिवसेना के बनाए जाने की मांग की जा रही है। जहां तक सीएम पद का सवाल है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि देवेन्द्र फणनवीस दुबारा से महाराष्ट्र के सीएम होंगे, कहा जा रहा है कि शिवसेना सीएम के पद पर इसलिए दावेदारी जता रही है ताकि आधा मंत्रिमंडल शिवसेना के खाते में किया जा सके। शिवसेना भी जानती है कि जब भाजपा को 105 सीटें मिली हैं, तब शिवसेना को सीएम पद नहीं मिल सकता। लेकिन शिवसेना शुरू से ही भाजपा पर दबाव की राजनीति करती आई है। महाराष्ट्र में 2014 में पहला अवसर रहा जब भाजपा का मुख्यमंत्री बना।  इससे पहले गठबंधन में शिवसेना का ही सीएम बनता रहा। चूंकि केन्द्र में भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चल रही है, इसलिए शिवसेना आखिर समय में भाजपा के साथ मिलकर ही महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी। यह बात अलग है कि कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल एनसीपी के माध्यम से शिवसेना के समक्ष सीएम का पद ऑफर कर दिया है। चुनाव में एनसीपी को 54 तथा कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं। ऐसे में शिवसेना के 56 विधायक कांग्रेस एनसीपी के साथ मिल जाए तो फिर बहुमत का 145 का आंकड़ा पार हो जाएगा। लेकिन शिवसेना कभी भी कांग्रेस के सहयोग से सरकार नहीं बनाएगी।
एस.पी.मित्तल) (25-10-19)
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