जब चीन में प्रदूषण नियंत्रण हो सकता है तो दिल्ली में क्यों नहीं?-सुप्रीम कोर्ट।

जब चीन में प्रदूषण नियंत्रण हो सकता है तो दिल्ली में क्यों नहीं?-सुप्रीम कोर्ट।
क्योंकि भारत का दिल्ली धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक महानगर है। 

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15 नवम्बर को दिल्ली के जानलेवा प्रदूषण पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार से जानना चाहा कि जब चीन में प्रदूषण नियंत्रण हो सकता है तो दिल्ली में क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट का कहना रहा कि चीन की तरह दिल्ली में भी एयर क्लिनिंग डिवाइस लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट भले ही दिल्ली की तुलना चीन से करे, लेकिन कोर्ट को यह समझना चाहिए कि चीन में एक ही पार्टी का शासन है और वहां विरोध की कोई गुंजाइश नहीं है। सरकार का फैसला ही सर्वोच्च फैसला माना जाता है। जबकि भारत का दिल्ली महानगर के धर्मनिरपेक्षता को मानने वाली लोकतांत्रिक सरकार है। दिल्ली में कानून की क्रियान्विति वैसे नहीं हो सकती है जैसे चीन में होती है। दिल्ली में जेएनयू में छात्रावास का शुल्क दस रुपए मासिक से बढ़ा कर तीन सौ रुपए किया जाता है तो हजारों छात्र सड़कों पर आ जाते हैं। ये छात्र उसी वामपंथी विचारधारा के हैं जिस विचारधारा की सरकार चीन में है। लेकिन दिल्ली में इस विचारधारा के छात्र स्वतंत्रता के साथ आंदोलन कर सकते हैं, लेकिन चीन में इसी विचारधारा के छात्र ऐसा कोई आंदोलन नहीं कर सकते। इसलिए चीन में प्रदूषण नियंत्रण हो सकता है, लेकिन दिल्ली में नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिन पहले ही सुनवाई करते हुए स्वीकार किया था, लेकि पंजाब, हरियाणा और यूपी में पराली जलाने की वजह से दिल्ली में दमघोंटू धुआ हो रहा है। कोर्ट ने इन तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब कर फटकार भी लगाई थी। लेकिन इसके बाद भी इन तीनों राज्यों में पराली जलाने का काम जारी रहा है। इससे सुप्रीम कोर्ट को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि चीन के मुकाबले में भारत में कैसी परिस्थितियां हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार अमरिंदर सिंह ने तो साफ कहा कि यदि पराली जलाने से रोकना है तो केन्द्र सरकार को पंजाब के किसानों को मुआवजा देना पड़ेगा। यानि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट को साफ साफ बता दिया कि पराली जलाना रुक नहीं सकता है। क्या अब सुप्रीम कोर्ट पंजाब के मुख्यमंत्री के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करेगा? कई बार सरकार जो फैसले लेती है उसको यही सुप्रीम कोर्ट पलट देता है। जबकि सरकार के ऐसे फैसले जनहित में होते हैें। ताजा उदाहरण प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का ही है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि सरकार ने ऑड-ईवन का जो नियम लागू किया, उससे दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिली है। दिल्ली में तीस लाख वाहन हैं। लेकिन ऑड ईवन की वजह से अब रोजाना 15 लाख वाहन ही सड़कों पर चल रहे हैं। लेकिन वहीं सुप्रीम कोर्ट का मानना रहा कि ऑड ईवन के नियम से प्रभावी तरीके से प्रदूषण नियंत्रण नहीं हो रहा है। यानि दिल्ली सरकार ने जो निर्णय लिया उससे सुप्रीम कोर्ट भी सहमत नहीं है। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की यही खुबसूरती है कि न्याय पालिका और कार्यपालिका में मतभेद सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किए जाते हैं। जबकि चीन में ऐसे मतभेदों की कोई गुंजाइश नहीं है।
एस.पी.मित्तल) (15-11-19)
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