महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट कर्नाटक से अलग है।
महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट कर्नाटक से अलग है।
तब भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश में दखल नहीं दिया था।
अजीत पवार को मानने की कोशिश।
25 नवम्बर को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिवसेना और शरद पवार वाली एनसीपी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने कहा कि कर्नाटक के प्रकरण में भी सुप्रीम कोर्ट ने येदुरप्पा को 24 घंटे में विधानसभा में बहुमत साबित करने के आदेश दिए थे, इसलिए महाराष्ट्र के प्रकरण में भी ऐसे ही आदेश दिए जाएं। हालांकि 25 नवम्बर को लगातार दूसरे दिन की सुनवाई में शिवसेना और शरद पवार को सफलता नहीं मिली है, लेकिन महाराष्ट्र के ताजा प्रकरण से कर्नाटक के प्रकरण की तुलना नहीं की जा सकती है। असल में कर्नाटक में जब राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, तब कांग्रेस रात को ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। तब कांग्रेस के येदुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन तब भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश में कोई दखल नहीं दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि येदुरप्पा राज्यपाल के आदेश से शपथ ले रहे हैं, इसलिए रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन कोर्ट ने येदुरप्पा को चौबीस घंटे में विधानसभा में बहुमत साबित करने के आदेश दे दिए। जबकि महाराष्ट्र में तो देवेन्द्र फडऩवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। फडऩवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने काम काज भी शुरू कर दिया है। शिवसेना और शरद पवार ने जो याचिका प्रस्तुत की है उसमें देवेन्द्र फडऩवीस के शपथ ग्रहण को निरस्त करने और शिवसेना, शरद पवार ने कांग्रेस के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के आदेश राज्यपाल को देने की मांग की गई है। इस याचिका में फडऩवीस सरकार को बहुमत साबित करने की कोई मांग नहीं की गई है। अब यह मांग कपिल सिब्बल और सिंघवी की ओर से मौखिक तौर पर की जा रही है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे को 25 नवम्बर की सुनवाई में भी भाजपा के वकील मुकुल रोहतगी ने प्रमुखता से उठाया। रोहतगी ने कहा कि कोर्ट उन बिंदुओं पर निर्णय दे सकता है जो याचिका में लिखे गए हैं। याचिका में दोनों प्रमुख बिंदु राज्यपाल के आदेश से जुड़े हुए हैं और देश के संविधान के मुताबिक राज्यपाल के आदेश की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है, इसलिए याचिका को खारिज किया जाए। रोहतगी के तर्कों पर जस्टिस एनवी रमन्ना ने सिब्बल और सिंघवी से कहा भी कि आप मामले को फैलाए नहीं। याचिका में जो बिंदु उठाए उसी पर अपना पक्ष रखें। यानि 25 नवम्बर की सुनवाई में भी यह बात सामने आई कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के मामले अलग अलग हैं। सिब्बल और सिंघवी ने माना कि 22 नवम्बर को अजीत पवार ने एनसीपी के 54 विधायकों के समर्थन वाला जो पत्र राज्यपाल को सौंपा, उस पर विधायकों के हस्ताक्षर हैं, लेकिन अब महाराष्ट्र के हालात बदल चुके हैं। एनसीपी के विधायकों ने अजीत पवार विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया है। ऐसे में अजीत पवार का समर्थन वाला पत्र कोई मायने नहीं रखता है। 25 नवम्बर को सुनवाई के दौरान अजीत पवार की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र में एनसीपी विधायक दल के नेता अजीत पवार ही है और इसी हैसियत से पवार ने राज्यपाल को समर्थन वाला पत्र दिया था।
अजीत पवार को मनाने की कोशिश:
25 नवम्बर को भी शरद पवार की ओर से अपने भतीजे अजीत पवार को मनाने की कोशिशें जारी रही। जयंत पाटिल से लेकर छगनभुजबल तक ने अजीत पवार से मुलाकात की। भुजबल का कहना रहा कि अजीत पवार को मनाने के प्रयास आगे भी जारी रहेंगे। जानकार सूत्रों का मानना है कि जब तक अजीत पवार भाजपा के साथ हैं, तब तक कांग्रेस शिवसेना और शरद पवार के द्वारा विधानसभा में बहुमत साबित करना मुश्किल है। शरद पवार को भी अपने भतीजे की ताकत का अंदाजा है, इसलिए वे लगातार अजीत पवार को मनाने की कोशिश कर रहे हैं।
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