कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने का समर्थन करने वाले ही नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं।

कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने का समर्थन करने वाले ही नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं। देश की जनता ऐसे तत्वों को पहचाने। 

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19 दिसम्बर को देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पटना और चंडीगढ़, यूपी, कर्नाटक आदि में नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन हुए। धारा 144 लागू होने के बाद भी प्रदर्शनकारी नहीं माने। दिल्ली में लालकिले के बाहर जेएनयू के विख्यात उमर खालिद ने तो पटना में कन्हैया कुमार ने प्रदर्शन में मुख्य भूमिका निभाई। प्रदर्शनकारियों का तर्क रहा कि नागरिकता कानून से देश के मुसलमानों की नागरिकता  खतरे में पड़ जएगी। नागरिकता कानून का विरोध वो ही लोग कर रहे हैं जो जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने के समर्थक रहे। हालांकि जम्मू कश्मीर से 370 को निष्प्रभावी किया गया और अब कश्मीर घाटी में भी सामान्य स्थिति हैं। कश्मीर के अधिकांश मुसलमान भी मानने लगे हैं कि 370 ही उनके विकास में बाधक थी। जैसे जैसे सरकारी योजनाओं के लाभ कश्मीरियों को मिलने लगे हैं, वैसे वैसे स्थिति सामान्य हो रही है। चूंकि 370 के हिमायतियों को जम्मू कश्मीर से कुछ नहीं मिला, इसलिए नागरिकता कानून को पकड़ लिया। विरोध करने वाले भी जानते हैं कि नागरिकता कानून से देश के किसी भी मुसलमान को खतरा नहीं है, लेकिन विरोध प्रदर्शन में भीड़ जुटाने के लिए गलत बयानी की जा रही है। ऐसा ही दुष्प्रचार 370 को निष्प्रभावी करने के समय किया था, लेकिन थोड़े ही दिनों में कश्मीरियों के हकीकत समझ में आ गई। जब 370 को हटाने के बाद भी कश्मीर से एक भी मुसलमान का अहित नहीं हुआ तो फिर नागरिकता कानून से कैसे होगा? जबकि नागरिकता कानून का संबंध मुसलमान से है ही नहीं। इस कानून के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धर्म के आधार पर प्रताडि़त होकर आए हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, ईसाई, जैन व पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देना है। इस कानून में भारत के किसी नागरिक की नागरिकता को जांचने का प्रावधान नहीं है। देश के मुसलमानों को नेताओं के बयानों से गुमराह नहीं होना चाहिए। देश के मुसलमानों के सामने कश्मीर सबसे बड़ा उदाहरण है। क्या 370 को हटाने के बाद कश्मीर के किसी मुसलमान की नागरिकता पर सवाल उठाया गया? जब कश्मीर में ही मुसलमानों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुइ तो भारत में रहने वाले किसी भी मुसलमान के एनआरसी यानि नागरिकता की पहचान का नियम है तो यह नियम सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू होगा। इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा रहा है। वैसे भी अभी एनआरसी की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। लेकिन स्वार्थी तत्व नागरिकता कानून के साथ एनआरसी को जोड़ रहे हैं। देश के लोगों को ऐसे तत्वों से सावधान रहना चाहिए। जहां तक राजनीतिक दलों का सवाल है तो लोकसभा चुनाव में सच्चाई सामने आ गई है। जो लोग चुनाव में हार गए वो ही अब सड़कों पर हैं। जब हम लोकतंत्र की दुहाई देते हैं तो हमें चुनाव के परिणाम भी स्वीकारने चाहिए। भीड़तंत्र से गलत बातें नहीं मनवाई जा सकती। तीन मुस्लिम देशों के प्रताडि़त हिन्दुओं को भारत में रहने का अधिकार है।
एस.पी.मित्तल) (19-12-19)
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