कश्मीर से पाबंदियां हटाने से पहले हालातों की समीक्षा भी होनी चाहिए।
कश्मीर से पाबंदियां हटाने से पहले हालातों की समीक्षा भी होनी चाहिए।
सुरक्षा बलों पर पथराव और भारत विरोधी नारे लगते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए आवश्यक निर्देश।
अभिव्यक्ति के लिए सोशल मीडिया को अखबार और न्यूज चैनल के बराबर माना।
10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र शासित कश्मीर में पाबंदियां हटाने को लेकर आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि धारा 144 का इस्तेमाल लम्बे समय तक नहीं किया जा सकता। शासन को यह बताना होगा कि जिन वजहों से यह 144 लगाई जा रही है। नागरिकों को अपने अधिकार मिलने चाहिए। कोर्ट ने लम्बे समय तक इंटरनेट को बंद रखने पर भी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि जिस प्रकार अखबारों और न्यूज चैनलों को अभिव्यक्ति का अधिकार है, उसी प्रकार इंटरनेट (सोशल मीडिया) के माध्यम से लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट का दुरुपयोग करता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाए। इंटरनेट बंद होने से बैंकिंग आदि के कार्य भी प्रभावित होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश अपनी जगह हैं, लेकिन कश्मीर घाटी से पाबंदियां हटाने से पहले हालातों की समीक्षा भी होनी चाहिए। हालांकि प्रशासन लैंड लाइन और मोबाइल फोन की सुविधा सभी जगह शुरू कर दी है तथा अधिकांश कश्मीर में इंटरनेट की सुविधाएं भी उपलब्ध है। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि खुले हैं तथा बाजारों में हालात सामान्य हो गए हैं। सब जानते हैं कि 5 अगस्त 2019 से पहले जम्मू कश्मीर के हालात कैसे थे? श्रीनगर के लालचौक आए दिन पाकिस्तान के झंडे लहराकर देश विरोधी नारे लगाए जाते थे। कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों पर आए दिन पत्थर फेंकेे जाते थे। सुरक्षा बल जब आतंकियों के विरुद्ध कार्यवाही करते थे, तब आतंकियों के समर्थक पीछे से पत्थरबाजी कर बाधा पहुंचाते थे। हमारे सुरक्षाकर्मी आए दिन शहीद हो रहे थे। पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला आदि देश विरोधी बयान देकर अलगाववादियों को भड़काते थे। लेकिन पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के फैसलों से कश्मीर में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार आया है। जो पाबंदियां लगाई गई थी, उन्हीं का परिणाम रहा कि पत्थरबाजी और आतंकी वारदातें बंद हो गई। अब कोई जवान भी शहीद नहीं हो रहा है। पाकिस्तान को भी दखलंदाजी का अवसर नहीं मिल रहा है। सामान्य हालात होने के कारण ही सुरक्षा बलों की संख्या भी घटाई गई है। अब जब कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं। तब पाबंदियां हटाने में भी सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसा न हो कि पाबंदियां हटाने के साथ ही पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हालात बिगाडऩे का अवसर मिल जाए। जहां तक महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं को रिहाई का सवाल है तो इस पर कश्मीर के प्रशासन को ही निर्णय लेना चाहिए। देश की एकता और अखंडता के लिए कश्मीर में शांति होना जरूरी है।
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