सचिन पायलट को रघु शर्मा के बराबर खड़ा करने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को सरकार की आलोचना करने का हक है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष और सरकार में डिप्टी सीएम होने के बाद भी सचिन पायलट भले ही कांग्रेस सरकार की आलोचना करें, लेकिन राजनीतिक तौर तरीकों को अपनाने में पायलट अभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बहुत पीछे हैं। कोटा में सरकारी अस्पताल में बच्चों की मौत पर पायलट ने अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया था, तब उम्मीद जताई गई कि मुख्यमंत्री की ओर से तीखी प्रतिक्रिया दी जाएगी, क्योंकि पायलट के बयान से विपक्ष के आरोपों को ही बल मिला था। पायलट के बयान पर गहलोत ने एक सप्ताह तक चुप्पी साधे रखी। 9 जनवरी को कहा कि पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते पायलट को सरकार की आलोचना का हक है। साथ पायलट को यह भी अहसास करवाया कि डिप्टी सीएम होने के नाते पायलट भी सरकार के अंग है। यानि गहलोत ने पायलट के बयान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। अब राजनीतिक समीक्षक गहलोत की सूझबूझ की प्रशंसा कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि सचिन पायलट जैसे दिग्गज नेता को चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के बराबर खड़ा कर देने के बाद गहलोत ने पायलट के बयान पर प्रतिक्रिया दी है। बच्चों की मौत पर जब पायलट ने सरकार की जिम्मेदारी की बात कही थी, तब चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने पायलट को करारा जवाब देते हुए कहा कि जिम्मेदारी तो पीडब्ल्यूडी की भी है। सरकार अस्पतालों के भवनों की मरम्मत एवं रख रखाव का जिम्मा पीडब्ल्यूडी का ही है। कोटा के शिशु वार्ड के टूटे दरवाजे और खिलाडिय़ों की मरम्मत पीडब्ल्यू को ही करनी चाहिए। चूंकि पायलट प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं, इसलिए उनकी भी जिम्मेदार बनती है। रघु की इस प्रतिक्रिया के बाद पायलट ने कहा था कि सत्ता में आने के बाद कुछ लोगों को घमंड आ जाता है। यानि बच्चों की मौत पर पायलट और रघु आमने सामने हो गए। तब भी यह माना गया कि रघु के पीछे सीएम गहलोत खड़े हैं। यदि गहलोत की शह नहीं होती तो रघु शर्मा, पायलट को लेकर ऐसा बयान नहीं देते। इसका अंदाजा गहलोत के 9 जनवरी वाले बयान से भी लगाया जा सकता है। गहलोत ने कहा कि विपक्ष ने साजिश के तहत बच्चों की मौत को मुद्दा बना था। यानि विपक्ष की साजिश में पायलट भी शामिल थे। प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर लगातार 6 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर 8 जनवरी को पायलट ने कहा था कि भाजपा के शासन में लाठी गोलियां हमने खाई थी, तब जाकर कांग्रेस सत्ता में आई। पायलट ने यह भी कहा कि जब मैंने प्रदेशाध्यक्ष का पद संभाला तब कांगे्रस के मात्र 21 विधायक थे। 2013 के विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद लोगों का कहना था कि कांग्रेस अब 10-20 बरस सत्ता में नहीं आ सकती। लेकिन कार्यकर्ता के दम पर पांच वर्ष में ही कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई। पायलट को इस बात का भी मलाल रहा कि वे मुख्यमंत्री नहीं बन सके। पायलट के इस बयान का जवाब भी 9 जनवरी को गहलोत ने दिया। गहलोत ने कहा कि 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद प्रदेशभर के लोग चाहते थे कि अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री बने। मैं जनता के आशीर्वाद से तीसरी बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बना। पायलट और गहलोत के ताजा बयानों से जाहिर है कि प्रदेश में सत्ता और संगठन में तालमेल नहीं है। प्रदेशाध्यक्ष पायलट और मुख्यमंत्री गहलोत अलग अलग राग अलाप रहे हैं।
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