तो राजस्थान के सीएम गहलोत के कृत्य की वजह से कांग्रेस से नाराज हैं मायावती।

तो राजस्थान के सीएम गहलोत के कृत्य की वजह से कांग्रेस से नाराज हैं मायावती।
बसपा विधायकों का मुद्दा उठाकर सोनिया गांधी की बैठक का बहिष्कार।
सीएए पर विपक्ष की बैठक को धक्का। 

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13 जनवरी को दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कुछ विपक्षी दलों की जो बैठक हुई, उस बैठक का बसपा प्रमुख मायावती ने बहिष्कार किया है। बैठक में शामिल होने के लिए कांगे्रस ने मायावती को निमंत्रण भेजा था, लेकिन मायावती ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कृत्य सामने रखकर बैठक में शामिल होने से इंकार कर दिया। मायावती ने कहा कि राजस्थान में बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर कांग्रेस ने गलत किया है। मायावती ने बसपा विधायकों पर अपनी नाराजगी भी जताई। मालूम हो कि राजस्थान में अपनी सरकार को मजबूती देने के लिए अशोक गहलोत ने बसपा ने सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवा कर बसपा का सूपड़ा साफ कर दिया था। गत विधानसभा में कांग्रेस को 200 में से 99 सीटें मिली थी। सरकार को मजबूती देने के लिए गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों का पाला बदलवा दिया। गहलोत ने अपनी सरकार तो मजबूत कर ली, लेकिन मायावती को कांग्रेस से दूर कर दिया। मायावती केक बहिष्कार के बाद सोनिया गांधी की बैठक को भी धक्का लगा। कांगे्रस की अगुवाई वाली बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अथवा उनकी पार्टी के किसी प्रतिनिधि ने भी भाग नहीं लिया। हालांकि इन नेताओं की पार्टियां संशोधित नागरिकता कानून का विरोध कर रही हैं, लेकिन इस मुद्दे पर ऐसी पार्टियां कांग्रेस के साथ नहीं है। ममता, मायावती, केजरीवाल जैसे नेता अपने अपने राजनीतिक कारणों से कांगे्रस के साथ खड़ा नहीं होना चाहते। कांग्रेस की तरह इन पार्टियों की नजर भी मुस्लिम मतदाताओं पर है। दिल्ली में तो विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी किसी भी स्थित में अपने हाथ से मुस्लिम मतदाताओं को निकलने नहीं देना चाहती। पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष चुनाव होने हैं। चूंकि वामपंथी दल कांग्रेस से चिपके हुए हैं, इसलिए ममता बनर्जी भी कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं। बंगाल में ममता ने तो वामपंथियों से सत्ता छीनी है। ममता अच्छी  तरह जानती हैं कि उन्हें किन मतदाताओं के दम पर सत्ता मिली है। बंगाल में वामपंथियों को उखाडऩा आसान नहीं था। शिवसेना ने भले ही कांग्रेस के सहयोग से महाराष्ट्र में सरकार बना ली है। लेकिन सीएए के मुद्दे पर शिवसेना भी कांग्रेस के साथ खड़ी नहीं होना चाहती। पाकिस्तान से प्रताडि़त होकर आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की मांग शिवसेना करती रही है। ऐसे में कांग्रेस की बैठक में भाग लेकर महाराष्ट्र में शिवसेना वोटों का गणित बिगाडऩा नहीं चाहती। इसे कांग्रेस की राजनीतिक मजबूती ही कहा जाएगा कि समर्थन देने के बाद भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कांग्रेस के साथ खड़ा नहीं होना चाहते हैं। असल में महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए शिवसेना और कांग्रेस ने गठबंधन किया है। बदली हुई परिस्थितियों में इस गठबंधन में दरार भी आने लगी है। विभागों के बंटवारे पर कांग्रेस नेता खुला विरोध कर रहे हैं।
एस.पी.मित्तल) (13-01-2020)
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