कांग्रेस ने अपनी बलि देकर आखिर केजरीवाल को जितवा ही दिया।

कांग्रेस ने अपनी बलि देकर आखिर केजरीवाल को जितवा ही दिया।
दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। 

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11 फरवरी को घोषित दिल्ली विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है, लेकिन फिर भी कांग्रेस के नेता उत्साहित हैं। दिल्ली कांग्रेस ने अपनी बलि देकर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को जितवा दिया है। 70 में से एक भी सीट नहीं मिलने से दिल्ली में कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्ष 2015 के चुनाव में भी कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। यानि पांच वर्ष बाद भी कांग्रेस ने अपनी स्थिति को बरकरार रखा है। वर्ष 2015 के मुकाबले 2020 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी गिरा है। दिल्ली में कांग्रेस के अधिकांश उम्मीदवारों को हजार मत भी नहीं मिले हैं, इससे प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने दिल्ली में चुनाव लड़ा ही नहीं। कांग्रेस को भी पता था कि यदि उनकी पार्टी को वोट मिले तो इसका फायदा भाजपा को होगा। कांग्रेस नहीं चाहती थी कि भाजपा को कोई लाभ पहुंचे। कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोट भी खुले छोड़ दिए। कांग्रेस के सारे वोट केजरीवाल की पार्टी के उम्मीदवारों को मिले। इसका परिणाम ये रहा कि केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। देखा जाए तो कांग्रेस अपने राजनीतिक मकसद में सफल रही है। कांग्रेस का मकसद भाजपा को हराना था। यही वजह है कि स्वयं की हार और केजरीवाल की जीत के बाद भी कांग्रेस में खुशी का माहौल है। सवाल चुनावी मुद्दों का नहीं है, सवाल कांग्रेस की रणनीति का है। केजरीवाल माने या नहीं लेकिन आम आदमी पार्टी की जीत में कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका है। कांग्रेस के नेता अब कह सकते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को हरा दिया है। कांग्रेस सौ वर्ष पुरानी राष्ट्रीय पार्टी है, लेकिन देश की राजधानी में उसे एक भी सीट नहीं मिली है, लेकिन कांग्रेस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। कांग्रेस को अपनी हार का गम नहीं है, बल्कि भाजपा की हार की ज्यादा खुशी है।
(एस.पी.मित्तल) (11-02-2020)
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