जम्मू कश्मीर के जिला विकास परिषद के चुनाव में गुपकार को भाजपा की टक्कर। 280 सीटों में से गुपकार को 95, भाजपा को 50, कांग्रेस को 25 तथा निर्दलीयों को 50 सीटों पर बढ़त। अनुच्छेद 370 की वजह से जिला विकास परिषद के चुनाव नहीं होते थे। पाकिस्तान से आए शरणर्थियों को भी पहली बार मिला वोट डालने का अधिकार।
जम्मू कश्मीर के 20 जिलों में हुए जिला विकास परिषद के चुनावों में भाजपा ने गुपकार समूह को जोरदार टक्कर दी है। 22 दिसम्बर को घोषित किए जा रहे परिणाम के अनुसार 280 सीटों में से गुपकार को 95, भाजपा को 50, कांग्रेस को 25 तथा निर्दलीयों की 50 सीटों पर बढ़त मिल रही है। भाजपा को जम्मू के अलावा कश्मीर घाटी में भी सफलता मिली है। भाजपा को हराने के लिए फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ़्रेंस, मेहबूबा मुफ्ती की पीडीपी तथा कांग्रेस सहित 6 राजनीतिक दलों ने गुपकार समूह बनाया था। संयुक्त उम्मीदवार खड़े किए जाने के बाद भी गुपकार समूह उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं कर सका। जम्मू कश्मीर में जब अनुच्छेद 370 प्रभावी था, तब जिला विकास परिषद के चुनाव नहीं हो सकते थे। ऐसे में कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीडीपी के विधायक और सांसद ही सरकारी धनराशि खर्च कर रहे थे। लेकिन गत वर्ष अगस्त माह में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया तब जिला स्तर पर चुनाव संभव हुए। पहले तो गुपकार समूह ने चुनावों का बहिष्कार करने की घोषणा की, लेकिन बाद में चुनावों का महत्व समझते हुए चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने का ऐलान कर दिया। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह अच्छी बात है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जिला विकास परिषद के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने भागीदारी की है। जम्मू कश्मीर के जो नेता कहते थे कि अनुच्छेद 370 से छेड़छाड़ की गई तो तिरंगे को कंधा देने वाला कोई नहीं मिलेगा। ऐसे नेताओं को इन चुनावों में मुंह तोड़ जवाब दिया है। जिला विकास परिषद के चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अभी विधानसभा के चुनाव नहीं होंगे। जम्मू कश्मीर के केन्द्र शासित प्रदेश बनने के बाद विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन नए सिरे से होगा। परिसीमन का काम पूरा होने के बाद ही विधानसभा के चुनाव संभव है। जिला विकास परिषद के चुनाव परिणाम बताते हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों ने केन्द्र सरकार की नए प्रशासनिक व्यवस्था को स्वीकार किया है। अब सरकारी योजनाओं की क्रियान्विति जिला विकास परिषद के सदस्यों के माध्यम से होगी। जम्मू कश्मीर में निचले स्तर तक लोकतंत्र मजबूत हुआ है। अब जम्मू कश्मीर का मतदाता अपने वार्ड पार्षद से सवाल जवाब कर सकेगा। यह पहला अवसर रहा जब पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को भी वोट डालने का अधिकार मिला है। अनुच्छेद 370 की वजह से वाल्मीकि और गौरखा समुदाय के लोगों को वोट डालने का अधिकार नहीं था। जम्मू कश्मीर के ये चुनाव पाकिस्तान को भी करारा जवाब है। पाकिस्तान अपने निहित स्वार्थों के खातिर जम्मू कश्मीर के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठता रहा है। पाकिस्तान का अकसर यह आरोप रहा कि जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना ज्यादती करती है। लेकिन जम्मू कश्मीर के लोगों ने पाकिस्तान को यह बता दिया है कि उनका विश्वास भारतीय लोकतंत्र में है। वोट के जरिए वे अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।
S.P.MITTAL BLOGGER (22-12-2020)
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