कृषि कानूनों की क्रियान्विति के आदेश राज्यों को दिए जा सकते हैं। कांग्रेस शासित राज्य अपनी विधान सभाओं में प्रस्ताव पास कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के रोके के आदेश के बाद कानूनों को डेढ़ वर्ष के लिए स्थगित करने का सरकार का प्रस्ताव कोई मायने नहीं रखता।
केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पंजाब के किसान करीब दो माह से दिल्ली की सीमाओं को घेर कर बैठे हैं। इस बीच कई दौर की बैठकें भी हो गई हैं, लेकिन नतीजा नहीं निकला है। जब किसानों ने कानूनों पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी नहीं माना, तब कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित किए जाने का सरकार का प्रस्ताव कोई मायने नहीं रखता है। किसान यूनियनों के प्रतिनिधि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार का बार बार कहना है कि पंजाब के जो किसान दिल्ली को घेर कर बैठे हैं वे पूरे देश के किसानों को प्रतिनिधित्व नहीं करते। देश में करोड़ों किसान ऐसे हैं जो नए कानूनों के पक्ष में हैं। जो तीन नए कृषि कानून है, उन्हें संसद के दोनों सदनों से मंजूर करवाया गया है, इसलिए ये कानून देशभर में लागू हो रहे हैं, लेकिन अब समाधान निकालने के लिए कानूनों की क्रियान्विति का अधिकार राज्यों को दिया जा सकता है। यानि पंजाब में अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार केन्द्र के कानून को लागू नहीं करना चाहे तो वह स्वतंत्र हैं। कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब ने पहले ही अपनी विधान सभाओं में केन्द्र के कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव मंज़ूर कर रखे हैं। ऐसे प्रस्ताव राज्यपालों के पास विचाराधीन हैं। कांग्रेस के मुख्य मंत्रियों की मांग है कि सभी राज्यपाल सरकार के संशोधन प्रस्तावों को राष्ट्रपति के पास भेजे। इसको लेकर राजस्थान में तो कांग्रेस की ओर से आंदोलन भी हो चुका है। अब यदि कानूनों की क्रियान्विति का अधिकार राज्यों को मिल जाएगा तो समस्या का समाधान हो सकता है। कानून को डेढ़ वर्ष के लिए स्थगित करने का प्रस्ताव भी किसान यूनियनें ठुकरा चुकी हैं। अब सरकार के सामने किसानों की मांगे स्वीकार ने का ही रास्ता बचा है। पंजाब के किसानों ने जिस तरह से देश की राजधानी दिल्ली की घेराबंदी की है उससे सरकार को भी अपनी स्थिति समझ में आ रही है। सरकार भले ही यह कहती रहे कि धरना देने वाले किसान देश के सभी किसानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, लेकिन सरकार को हार बार धरना देने वाले किसानों से भी वार्ता करनी पड़ रही है। किसानों की ताकत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर ट्रेक्टर मार्च निकालने की जिद कायम है। दिल्ली पुलिस ट्रेक्टर मार्च पर सहमत भी हो गई है। अब सिर्फ मार्च के मार्ग को लेकर विवाद है। यानि 26 जनवरी को जब दिल्ली के राजपथ पर देश के विकास की झांकियां निकलेगी तभी दिल्ली में एक लाख से भी ज्यादा ट्रेक्टर मार्च करेंगे। S.P.MITTAL BLOGGER (22-01-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9509707595To Contact- 9829071511