किसान आंदोलन के कमजोर पड़ते ही विपक्षी दलों के नेता नकाब उतार कर सामने आ गए। काश! ऐसी हमदर्दी 400 जख्मी जवानों के प्रति दिखाई जाती। लालकिले की घटना पर चुप रहे।
26 जनवरी को दिल्ली हिंसा के बाद जब दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन कमजोर पडऩे लगा तो विपक्षी दलों के नेता अपने चेहरे पर से नकाब उतार कर सामने आ गए। जो किसान नेता कल तक कह रहे थे कि हमारा किसी भी राजनीतिक दल से संबंध नहीं है, उन नेताओं को विपक्षी दलों के नेता अचानक अच्छे लगने लगे। राकेश टिकैत के आसंू पौछने के लिए दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, आरएलडी के जयंत चौधरी धरना स्थल पर ही पहुंच गए। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने टिकैत से फोन पर बात की तो कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि किसानों को एक इंच भी पीछे नहीं हटना चाहिए। पूरी कांग्रेस पार्टी किसानों के साथ खड़ी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी साथ देने का भरोसा जताया। विपक्षी दलों के नेताओं ने ऐसे प्रदर्शित किया जैसे यदि किसान आंदोलन खत्म हो जाएगा तो उनकी राजनीतिक जमीन खिसक जाएगी। विपक्षी दलों के नेता आंदोलन को जारी रखने के लिए कुछ भी करने को उतावले दिखे। सब जानते हैं कि पंजाब में अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव दस-बीस हजार लोगों को राकेश टिकैत के समर्थन में भेज ही सकते हैं। विपक्षी दलों के खुले समर्थन के बाद दिल्ली की सीमाओं पर फिर से भीड़ जमा हो गई। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों के द्वारा किसी आंदोलन को समर्थन देना गलत नहीं हैं, लेकिन ऐसी हमदर्दी यदि दिल्ली पुलिस के 400 जख्मी जवानों के प्रति भी दिखाई जाती तो अच्छा होता। सवाल उठता है कि क्या पुलिस के जवान देश के नागरिक नहीं है? 26 जनवरी को किसान आंदोलन की आड़ में अराजकतत्वों ने जो हिंसा की उसमें पुलिस के 400 जवान जख्मी हो गए। अब जख्मी जवान अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो अपना फर्ज निभाते हुए अस्पतालों में जख्मी जवानों से मुलाकात की लेकिन राहुल गांधी जैसे किसी भी नेता ने जख्मी जवानों की कुशलक्षेम नहीं पूछी। क्या विपक्षी दलों के नेता उन्हीं लोगों के साथ हमदर्दी दिखाते हैं जो लाल किले पर लहरते तिरंगे का अपमान करते हैं? राहुल गांधी और विपक्षी दलों के नेतो बताएं कि तिरंगे के पास ही दूसरे झंडे फहराना कितना उचित है? यदि विपक्षी नेताओं को किसान आंदोलन के कमजोर होने की चिंता है तो उन्हें दिल्ली हिंसा की भी उसी तरह निंदा करनी चाहिए, जिस तरह आंदोलन के प्रति हमदर्दी दिखाई जा रही है। हालांकि अब क्षेत्रीय ग्रामीण जिसमें किसान वर्ग भी शामिल है का कहना है कि लम्बे धरने से उनका कारोबार चौपट हो गया है। यदि धरना समाप्त नहीं हुआ तो वे स्वयं सिधी कार्यवाही करेंगे। हालांकि 28 जनवरी को पुलिस ने ग्रामीणों और धरनार्थियों का टकराव टाल दिया, लेकिन धरनार्थियों को भी ग्रामीणों की समस्या समझनी चाहिए।S.P.MITTAL BLOGGER (30-01-2021)Website- www.spmittal.inFacebook Page- www.facebook.com/SPMittalblogFollow me on Twitter- https://twitter.com/spmittalblogger?s=11Blog- spmittal.blogspot.comTo Add in WhatsApp Group- 9509707595To Contact- 9829071511