दिल्ली की सीमाओं पर कंटीले अवरोधक लगाने पर विपक्षी दलों के नेताओं को ऐतराज। तो क्या किसानों को गोली मार दें? 26 जनवरी की हिंसा के लिए केन्द्र सरकार को ही दोषी ठहराया था। अमरीकी सिंगर रिहाना को ट्वीट करने की क्या जरुरत थी? भारत में ही भरे पड़े हैं रिहाना प्रवृत्ति के स्टार और नेता।

4 फरवरी को दिल्ली के बाहर गाजीपुर बॉर्डर पर 10 विपक्षी दलों के सांसद पहुंचे और पुलिस द्वारा लगाए गए कंटीले अवरोधकों पर ऐतराज जताया। ममता बनर्जी की टीएमसी से लेकर अकाली दल के सांसदों ने कहा कि यह स्थिति किसानों को कैद करने जैसी है। अब विपक्षी दलों के सांसद लोकसभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट देंगे। ये विपक्षी दल वो ही हैं, जिन्होंने 26 जनवरी की हिंसा के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया और गृहमंत्री अमित शाह से इस्तीफे की मांग की। तब विपक्षी दलों के नेताओं का कहना था कि सरकार को दिल्ली में उपद्रव करने वालों से सख्ती से निपटना चाहिए था। सब जानते हैं कि जिस किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को दिल्ली में हिंसा और लाल किले पर तिरंगे का अपमान किया, उसी आंदोलन के नेताओं ने 6 फरवरी को देश भर में नेशनल हाइवे जाम करने की घोषणा की है। देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी जैसी हिंसा को रोकने के लिए ही बॉर्डर पर कंटीले अवरोधक लगाए गए हैं। अब इन अवरोधकों पर विपक्षी दलों को ऐतराज है तो सवाल उठता है कि क्या किसानों को गोली मार दी जाए? शायद विपक्ष तो यही चाहता है, क्योंकि ऐसा होने पर ही राजनीतिक रोटियां सेंकी जा सकेंगी। 4 फरवरी को ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी यूपी के रामपुर में नवरीत सिंह के निवास पर शोक व्यक्त करने पहुंची हैं। नवरीत की मौत 26 जनवरी को ट्रेक्टर मार्च में एक ट्रेक्टर पलटने से हुई थी। नवरीत की मौत से पुलिस का कोई सरोकार नहीं है, लेकिन फिर भी सियासत हो रही है। अंदाजा लगाएं कि यदि नवरीत की मृत्यु में पुलिस की कोई भूमिका होती तो प्रियंका गांधी और विपक्षी दल कितना हंगामा करते। नवरीत की मौत भले ही ट्रेक्टर पलटने से हुई हो, लेकिन मृत्यु दुखदाई है। ईश्वर नवरीत की आत्मा को शांति और परिजन को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। लेकिन अब विपक्षी नेता बताएं कि किसान आंदोलन की आड़ में दिल्ली में उपद्रवियों को रोकने के लिए क्या किया जाए? 26 जनवरी को दिल्ली में जब हिंसा हुई तो राकेश टिकैत सहित सभी किसान नेताओं ने कहा कि इससे किसानों का कोई सरोकार नहीं है। यह काम तो किसान आंदोलन को बदनाम करने वाले अराजकतत्वों का है। यह सही है कि दिल्ली की सीमाओं पर बैठा किसान कभी भी अराजक नहीं हो सकता, लेकिन यह भी सही है कि इसी आंदोलन की आड़ में दिल्ली में हिंसा हुई। हिंसा दोबारा से नहीं हो, इसीलिए सीमाओं पर कंटीले अवरोधक लगाए गए हैं। सरकार उन सब कृत्यों से बचना चाहती है, जिसकी उम्मीद नेता कर रहे हैं। इसे दिल्ली का जबर्दस्त धैर्य ही कहा जाएगा कि 400 जवानों के जख्मी होने के बाद भी सिर्फ कंटीले अवरोधक लगाए गए हैं। पुलिस और सरकार का मकसद सिर्फ अराजक तत्वों को रोकना है। यदि विपक्षी दल 26 जनवरी जैसी हिंसा नहीं होने का भरोसा दिलाएं तो शायद पुलिस कंटीले अवरोधकों को भी हटा लेगी, जहां तक अमरीकी स्टार रिहाना का किसान आंदोलन को लेकर ट्वीट करने का सवाल है तो भारत में ही रिहाना की प्रवृत्ति वाले स्टार और नेता भरे पड़े हैं। रिहाना बेवजह इस लफड़े में पड़ रही हैं। यदि रिहाना में हिम्मत हो तो वह चीन में हो रहे मुसलमानों पर अत्याचरों पर कोई ट्वीट करके दिखाएं। भारत में धर्मनिरपेक्षता वाला लोकतंत्र हैं इसलिए पाकिस्तान के आतंकवादी भी किसान आंदोलन पर ट्वीट कर सकते हैं। लेकिन तानाशाही वाले चीन पर ट्वीट करने की हिम्मत किसी की नहीं है। रिहाना अपने गाना गाते वक्त शरीर पर कपड़े पहने या नहीं इससे किसी भी भारतवासी को कोई सरोकार नहीं है तो फिर हमारे देश के किसी आंदोलन पर विदेशी सिंगर को ट्वीट करने की क्या जरुरत है। 

S.P.MITTAL BLOGGER (04-02-2021)

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