गुड़ामालानी (बाड़मेर) का सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट सुनील कुमार 10 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार। प्रशासनिक ढांचे के हर स्तर पर भ्रष्टाचार। एसीबी के पास तो बहुत कम मामले पहुंचते हैं। अधिकारियों की नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप। आरोपी एसडीएम झुंझुनूं के बख्तावरपुर का निवासी है। अजमेर के नसीराबाद में भी तहसीलदार रह चुका है।
राजस्थान के बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी के सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट सुनील कुमार जाट को 5 फरवरी को 10 हजार रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। जोधपुर के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने बताया कि रिश्वत का लेन देने एसडीएम ने अपने कक्ष में ही किया। पीडि़त पोपट राम जब रिश्वत लेकर पहुंचा तो एसडीएम ने अपने ड्राइवर दुर्गा राम को भी बुला लिया। एसडीएम के निर्देश पर ड्राइवर ने रिश्वत की राशि सरकारी वाहन में रख दी। तभी एसीबी की टीम ने ट्रेप की कार्यवाही की। राजपुरोहित ने बताया कि पोपट राम के वकील पप्पू राम ने लिखित में शिकायत की थी कि प्रकरण में स्टे देने के नाम पर एसडीएम रिश्वत की मांग कर रहे हैं। शिकायत के आधार पर ही ट्रेप की योजना बनाई गई। एसडीएम जाट झुंझुनूं के बख्तावरपुर का मूल निवासी है और तहसीलदार से आरएएस में पदोन्नत हुआ है। सुनील कुमार ने जयपुर विकास प्राधिकरण, अजमेर के नसीराबाद आदि में तहसीलदार के पद पर कार्य कर चुका है। एसीबी अब सुनील कुमार के विभिन्न आवासों की जांच पड़ताल कर रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजस्थान में एसीबी लगातार बड़ी कार्यवाहियां कर रही है। दो दिन पहले ही दौसा के पुलिस अधीक्षक रह चुके मनीष अग्रवाल को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है। इससे पहले दौसा के एसडीएम पुष्कर मित्तल और बांदीकुई की एसडीएम पिंकी मीणा को भी गिरफ्तार किया। सुनील कुमार जाट से लेकर आईपीएस मनीष अग्रवाल पर लगे आारेपों से स्पष्ट है कि प्रशासनिक ढांचे के हर स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। यदि एसडीएम स्टे देने के दस हजार रुपए वसूल रहा है तो क्षेत्र के तहसीलदार और पटवारियों की वसूली का अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि मनीष अग्रवाल जैसा पुलिस अधीक्षक प्राइवेट कंपनियों से 10-10 लाख रुपए की वसूली कर रहा है तो डीएसपी और थानाधिकारियों की वसूली का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार का दावा काम काज में पारदर्शिता लाने का होता है। लेकिन राजस्थान में तो कलेक्टर ही रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं। पिछले दिनों ही बारां कलेक्टर इन्द्र सिंह राव को पेट्रोल पंप की एनओसी देने के एवज में रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा गया। असल में अधिकारियों की नियुक्तियां राजनेताओं की सिफारिशों से होती है। प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार होती है उसके विधायक ही अधिकारियों को नियुक्त करवाते हैं। जब प्रदेश का मुखिया अपने समर्थक विधायकों को ब्याज सहित भुगतान की बात सार्वजनिक तौर पर कहता हो, तब प्रशासनिक ढांचे में भ्रष्टाचार तो होगा ही। यह माना कि प्रदेश के मुखिया का आईपीएस मनीष अग्रवाल, आईएएस इन्द्र सिंह राव, आरएएस सुनील कुमार जाट, पिंकी मीणा, पुष्कर मित्तल की रिश्वत खोरी से सीधा संबंध नहीं है, लेकिन ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति उन विधायकों की सिफारिशों से हुई, जिन्हें ब्याज सहित भुगतान करना है। एसीबी इन दिनों जिन अधिकारियों को रिश्वत के मामले में पकड़ रही है, उन अधिकारियों की नियुक्ति के लिए सिफारिश करने वाले विधायकों एवं प्रभावशाली नेताओं के नाम भी उजागर होने चाहिए।
S.P.MITTAL BLOGGER (05-02-2021)
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