क्या राजस्थान में सचिन पायलट को अपने दम पर किसान महापंचायत करने देंगे राहुल गांधी? दौसा की महापंचायत में न डोटासरा मौजूद रहे और न मंत्री परसादीलाल मीणा व ममता भूपेश। सरकार और संगठन में फिलहाल पायलट की कोई भूमिका नहीं।

तीन कृषि कानूनों के विरोध में हो रहे किसानों के आंदोलन को कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी लगातार समर्थन दे रहे है। राहुल गांधी का कहना है कि दिल्ली की सीमाओं से किसान एक इंच भी पीछे नहीं हटेगा। आंदोलन के समर्थन में राहुल गांधी कई बार प्रेस कॉन्फ़्रेंस भी कर चुके हैं। आंदोलनकारी किसानों को भरोसा दिलाया गया है कि कांग्रेस पार्टी उनके साथ खड़ी है, लेकिन सवाल उठता है कि राजस्थान में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को अपने दम पर किसान महापंचायत करने की छूट राहुल गांधी देंगे? पायलट ने अपने दम पर किसान महापंचायत करने की शुरुआत कर दी है। 6 फरवरी को दौसा में महापंचायत सफल भी रही है और अब 9 फरवरी को भरतपुर के बयाना में महापंचायत होगी। प्रदेश के सभी 33 जिलों में पायलट ऐसी महापंचायत करेंगे। पायलट किसान आंदोलन के समर्थन पर सभी महापंचायत तब कर रहे हैं, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बजट के लिए प्रदेश वासियों से वर्चुअल संवाद कर रहे है। बजट सत्र 10 फरवरी से होना है। इधर मुख्यमंत्री बजट की तैयारियों में जुटे हैं तो उधर पायलट जिला स्तर पर किसान पंचायत कर रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार सीएम गहलोत, पायलट की पंचायतों से खुश नहीं है, इसलिए 5 फरवरी को दौसा में हुई महापंचायत में दौसा जिले के मंत्री परसादी लाल मीणा (लालसोट) तथा ममता भूपेश (सिकराय) मौजूद नहीं रहे। अलबत्ता पायलट समर्थक विधायक और कांग्रेस के नेता उपस्थित रहे। पायलट पूर्व में दौसा के सांसद भी रह चुके हैँ और दौसा में गुर्जर समुदाय के लोगों की संख्या भी ज्यादा है। जानकार सूत्रों के अनुसार किसान महापंचायतों में पायलट भले ही केन्द्र सरकार पर निशाना साध रहे हों, लेकिन ऐसी पंचायतों के माध्यम से वे शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार और संगठन में पायलट की कोई भूमिका नहीं है। दौसा, जयपुर से जुड़ा हुआ जिला है,लेकिन फिर भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा महापंचायत में शामिल नहीं हुए। इससे जाहिर है कि पायलट की पंचायतों को कांग्रेस संगठन का भी समर्थन नहीं है। सब जानते हैं कि जुलाई माह में अचानक दिल्ली चले जाने के कारण सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन बाद में समझौता होने पर पायलट ने गहलोत सरकार को अपना समर्थन तो दे दिया, लेकिन पायलट को न तो मंत्री बनाया गया और न संगठन में कोई जिम्मेदारी दी गई। सचिन पायलट को भी आभास हो गया है कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें सरकार और संगठन में भागीदारी नहीं मिलेगी, इसीलिए अब उन्होंने अपनी राह अलग पकड़ ली है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बगैर पद के भी पायलट की लोकप्रियता राजस्थान में बड़ी हुई है। पायलट और उनके समर्थक अब पार्टी में रह कर ही अपना वजूद बनाए रखना चाहते हैं, इससे गहलोत सरकार बैचेन हैं। गहलोत समर्थकों को उम्मीद थी कि कांग्रेस में अब पायलट का युग समाप्त हो गया है, लेकिन पायलट ने अभी भी अपना वजूद कायम रखा है। अब पार्टी में रह कर ही गहलोत के नेतृत्व को चुनौती दी जा रही है।

S.P.MITTAL BLOGGER (06-02-2021)

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